* बिहार विधानसभा चुनाव – 2020 *
ओपिनियन पोल के मुताबिक, 243 विधानसभा सीटों में 74 फीसदी सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के प्रत्याशियों के बीच सीधी टक्कर है। वहीं, बीजेपी या जदयू के पूर्व में रह चुके जिला स्तर के कई शीर्ष नेताओं (जातिगत) को टिकट देकर लोजपा ने एनडीए का खेल बिगाड़ दिया है। चिराग पासवान के इस कदम से बीजेपी के कैडर (फॉरवर्ड) वोट बिखरते दिख रहे हैं। इस बार सवर्णो का झुकाव महागठबंधन की ओर भी बढ़ रहा है।
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चिराग पासवान जेडीयू के उम्मीदवारों कोे हराने की रणनीति पर काम कर रहे हैं और वह खुले तौर पर एलान भी कर चुके हैं। जहां जेडीयू का उम्मीदवार मैदान में है, वहां लोजपा ने अपने प्रत्याशी को उतारकर महागठबंधन एवं अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों का रास्ता आसान कर दिया है। बिहार में एनडीए को चिराग पासवान भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं और बीजेपी को आश्वस्त भी कर रहे हैं कि उनकी लड़ाई सिर्फ जदयू से है। लेकिन यह कैसे मान लिया जाये कि घाटा सिर्फ जदयू को होगा बीजेपी को नही। गठबंधन में चुनाव लडने का यही तो फायदा है कि पार्टियों के कैडर वोट घटक दल के उम्मीदवार को मिलते हैं।
प्रयोगधर्मी राजनीति कभी कभी खुद पर बहुत भारी पड़ जाती है। जिस चिराग को हवा बीजेपी ने दी, आज उसी चिराग ने बिहार में एनडीए को मुश्किल में डाल दिया है। बिहार में सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ लोजपा नेता चिराग पासवान का बयान जेडीयू को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ बीजेपी को भी बहुत भारी नुकसान पहुंचाने वाला है।
कई ओपिनियन पोल से यह भी स्पष्ट को गया है कि चिराग पासवान की लहर बिहार में नहीं है। चिराग पासवान ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। लोजपा बिहार में बीजेपी के साथ सरकार बनाना चाहती है लेकिन महागबठबंधन के सीएम उम्मीदवार तेजस्वी यादव की लहर चिराग से तेज हो गई है। बिहार में महागठबंधन की रैलियों में बढ़ती भीड़ को देखकर भले ही यह कह दिया जाये कि भीड़ से वास्तविकता का आकलन नहीं किया जा सकता। भीड़ सत्ता परिवर्तन की गारंटी नहीं है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि महागठबंधन को एनडीए पर बढ़त मिलती दिख रही है और चिराग पासवान लोजपा को फाइटिंग मोड में ले जाने में असमर्थ दिख रहे हैं।
चिराग पासवान चुनावी रैलियों में जदयू को पानी पी-पी कर कोस रहे हैं और अभी तक महागठबंधन के खिलाफ उनके एक भी बयान नहीं आये हैं, जबकि वह मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी है। तब चिराग की रणनीतियों पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं कि कहीं चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान के नक्शेकदम पर तो नहीं चल रहे हैं कि ना काहूं से दोस्ती और ना काहूं से बैर। क्योंकि लोजपा की बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार बनना दूर का सपना दिख रहा है।
क्योंकि अब तक के ओपिनियन पोल के मुताबिक, लोजपा को दस फीसदी सीटें भी नहीं मिलती दिख रही है। चिराग पासवान की लोजपा दहाई का आंकड़ा भी पार कर पायेगी, यह कहना मुश्किल है। चिराग पासवान जेडीयू के उम्मीदवारों को हराने की रणनीति पर काम कर रहे हैं और वह खुले तौर पर एलान भी कर चुके हैं। जहां जेडीयू का उम्मीदवार मैदान में है, वहां लोजपा ने अपने प्रत्याशी को उतारकर महागठबंधन एवं अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों का रास्ता आसान कर दिया है। जबकि, बीजेपी और जेडीयू को छोड़ चुके कई नेताओं को टिकट देकर चिराग पासवान बीजेपी के कैडर (फॉरवर्ड) वोट बैंक को बिखेरने का काम कर रहे हैं। चिराग ने बीजेपी-जदयू के वोटर को कंफ्यूज कर दिया है।
ओपिनियन पोल के मुताबिक, बिहार के 243 विधानसभा सीटों में 70 फीसदी सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के प्रत्याशियों के बीच सीधी टक्कर है। वहीं, बीजेपी या जदयू के पूर्व में रह चुके जिला स्तर के कई शीर्ष नेताओं को टिकट देकर लोजपा ने एनडीए का खेल बिगाड़ दिया है। जबकि एनडीए का घोषित (जदयू) उम्मीदवार वहां पहले से चुनाव मैदान में हैं। लोजपा ने कई सीटों पर जदयू के उम्मीदवारों को हराने के लिए ऐसा ही किया है, लेकिन इस लड़ाई में बीजेपी का भी बंटाधार होने वाला है।
चिराग पासवान की ओर से भले ही यह बयान बार-बार दिये जा रहे हों कि उनकी लड़ाई जदयू से है, लेकिन वहां खेल बीजेपी का भी बिगड़ रहा है। क्योंकि बीजेपी के कुछ वोटर महागठबंधन की ओर डायवर्ट हो रहे हैं। जो वोटर किसी भी सूरत में महागठबंधन के उम्मीदवारों वोट नहीं देंगे उनका वोट लोजपा के खाते में जरूर जायेगा लेकिन उन सीमित वोटों से लोजपा उम्मीदवार की जीत की राह आसन नहीं होगी। कुछ सीटों पर बीजेपी के कैडर वोट जातिगत उम्मीदवारों की वजह से इधर से उधर हो जायेंगे। जिसका सीधा फायदा प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार को मिलेगा।
सबसे बड़ी बात है कि चिराग पासवान रैलियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयानों का बखान कर रहे हैं और वह यह जताने की कोशिश में हैं कि हम बीजेपी से अलग नहीं हैं। चिराग पासवान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक मार्गदर्शक के रूप में भी मानते हैं। वह अपनी रैलियों में नरेन्द्र मोदी को भूनाना चाहते हैं।
चिराग पासवान की रणनीति यही है कि, जदयू के उम्मीदवारों को हराकर लोजपा एक ऐसी स्थिति में आ जाये जिससे इस पार्टी को बिहार की सत्ता में साझीदार बनने का मौका मिले। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही हैं। आरजेडी नेता और पार्टी के सीएम उम्मीदवार तेजस्वी यादव प्रतिद्वंद्वी नेताओं पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। बिहार में अचानक लहर बदलती दिख रही है। रैलियों की भीड़ के आधार पर आकलन किया जा रहा है।
तेजस्वी की सभा में बढ़ती भीड़ ने महागठबंधन के नेताओं का हौसला बुलंद कर दिया है। कई सर्वे में महागठबंधन को आगे बताया जा रहा है। यह भीड़ वोट में कनवर्ट हो पायेगी, यह देखना बाकी है। सूत्र बताते हैं कि, बीजेपी अगर रणनीतियों में बदलाव नहीं कर पायी तो एनडीए को 15-20 फीसदी सीटों का नुकसान हो सकता है, जिसकी वजह चिराग पासवान होंगे। उनकी रणनीति एनडीए के खिलाफ है।
चिराग पासवान दिवंगत नेता रामविलास पासवान के पुत्र हैं जिन्हें भारतीय राजनीति में मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता है। क्योंकि वह सियासत की लहर को भांप लेते थे। केन्द्र में सरकार किसी भी पार्टी की हो, एक मंत्रालय उनके पास जरूर होता था। वह अपने राजनैतिक कॅरियर में छह प्रधानमंत्रियों के कैबिनेट में मंत्री रह चुके थे और उनकी राजनीतिक अवसरवादिता भारतीय राजनीति में शोध का विषय है। चुनाव परिणाम के बाद अगर लोजपा का महागठबंधन से नजदीकियां बढ़ने लगे तो यह हैरानी की बात नहीं होगी। एक बात और, मोदी लहर पर सवार होकर दो बार सांसद बनने वाले चिराग पासवान को बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम उनकी वास्तविक राजनीतिक हैसियत का अहसास करा देगा।




