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दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए खुल गये संभावनाओं के द्वार

जीएचएमसी चुनाव परिणाम: 2020

जीएचएमसी के चुनाव में टीआरएस बड़ी पार्टी बनकर उभरी है लेकिन इस बार बीजेपी से बड़ी चुनौती मिली है। 2016 मेे 99 सीटे जीतने वाली टीआरएस इस चुनाव में 56 सीटों पर सिमट गई। जबकि 2016 में 4 सीटें जीतने वाली बीजेपी 48 सीटें जीतकर प्रतिस्पर्धी पार्टियों को आगामी चुनावों में लम्बी लड़ाई एलान कर दिया है। असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम दूसरे स्थान से खिसककर तीसरे स्थान पर पहुंच गई हैै। 44 सीटें जीतकर ओवैसी अपना राजनीतिक ग़ढ़ बचाने में सफल रहे लेकिन बीजेपी की बंपर जीत ने उन्हें भविष्य में मिलने वाली चुनौतियों का अहसास करा दिया है।

ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (जीएचएमसी) के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। नगर निगम का यह चुनाव हाईप्रोफाइल चुनाव में परिवर्तित हो गया था। केन्द्र सरकार के कई मंत्री और बीजेपी के कई शीर्ष नेताओं ने चुनावी रैलियों में शामिल होकर वहां के प्रतिद्वंद्वियों को यह अहसास करा दिया था कि बीजेपी को हल्के में लेना बड़ी भूल होगी। चुनाव परिणाम ने भी ऐसा ही संकेत दिया है।

सत्तारूढ़ पार्टी (टीआरएस) 56 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफल रही। जबकि बीजेपी 48 सीटें जीतकर दूसरी बड़ी पार्टी बन गई है।

असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम दूसरे स्थान से खिसककर तीसरे स्थान पर पहुंच गई हैै। वहीं कांग्रेस दो सीट जीतकर चौथे स्थान पर रही। कांग्रेस अपनी नेतृत्वहीनता की कीमत वहां भी चुकायी है।

इस चुनाव में एआईएमआईएम को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। 44 सीटें जीतकर ओवैसी अपना राजनीतिक ग़ढ़ बचाने में सफल रहे। लेकिन बीजेपी की बंपर जीत ने उन्हें भविष्य में मिलने वाली चुनौतियों का अहसास करा दिया है। ओवैसी को क्षेत्र में एकमुश्त मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं और इस बार भी जिन सीटों पर एआईएमआईएम के उम्मीदवार उतरे थे, उन अधिकांश सीटों पर एआईएमआईएम को जीत हासिल हुई है। इस लिहाज से देखा जाये तो इस चुनाव में एआईएमआईएम को न ज्यादा फायदा हुआ है और ना ही नुकसान ।

बीजेपी ने टीआरएस के गढ़ में सेंध मारकर 48 सीटे जीतकर दूसरी बड़ी पार्टी बनने में सफलता पायी है। बीजेपी ने इसे एक प्रयोगधर्मी चुनाव के तौर पर लिया जिसमें पार्टी को उम्मीद से कहीं ज्यादा सफलता हासिल हुई है।

दक्षिण भारत में बीजेपी की पकड़ कमजोर है। वहां की क्षेत्रीय पार्टियां राज्य में सत्ता का निर्धारण करती है। यहां तक की देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी दक्षिण भारत में अपना विस्तार नहीं सकी। आंध्र, तेलंगाना, केरल, चेन्नई की राजनीति में देखा जाये तो राज्य सत्ता पर क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा हमेशा ही रहा है। केन्द्र सरकार राज्य की सत्ता में हिस्सेदार बनने के लिए जोड़-घटाव करते देखी जाती है। हैदराबाद में तेलंगाना राष्ट्र समिति का शुरू से ही वर्चस्व रहा है। अलग राज्य का दर्जा दिलवाने में टीआरएस की बड़ी भूमिका रही है। इसलिए जमीनी स्तर पर टीआरएस का विस्तार दिखाई देता है।

जीएचएमसी के चुनाव में टीआरएस बड़ी पार्टी बनकर उभरी है लेकिन इस बार बीजेपी से बड़ी चुनौती मिली है। 2016 मेे 99 सीटे जीतने वाली टीआरएस इस चुनाव में 56 सीटों पर सिमट गई। जबकि 2016 में 4 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2020 में 48 सीटें जीतकर प्रतिस्पर्धी पार्टियों को आगामी चुनावों में लम्बी लड़ाई एलान कर दिया है।

दक्षिण भारत में बीजेपी अब बड़े बड़े स्तर पर विस्तार करना चाहती है। बीजेपी के पास एक ऐसा ब्रम्हास्त्र है जिसकी कांट ढूंढ पाने में प्रतिस्पर्धी नेताओं के पसीने छूट जाते हैं। हिन्दुत्व, आतंकवाद, भारतीय सुरक्षा और भारतीय अस्मिता की बात करना कहीं से गलत नहीं है। लेकिन प्रतिद्वंद्वी पार्टियां इन मुद्दों पर बीजेपी के सामने असहज हो जाती है।

चुनावी रैली में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता में आने के बाद हैदराबाद को भाग्यनगर में बदलने एलान कर दिया। इसके बाद ओवैसी बीजेपी को रोकने के लिए मुसलमानों को अकलियत और पहचान का हवाला देने लगे। एआईएमआईएम के नेता असदउद्दीन ओवैसी भारत में कद्दावर मुस्लिम नेता की पहचान बनाना चाहते है। उनके भाषणों को मुसलमान गौर से सुनते है। इस देश का मुसलमान जो टू नेशन थ्योरी पर चलना चाहता है वह ओवैसी में जिन्ना का अक्श ढूंढता है। इस्लाम का हवाला देकर या चाहे जैसे भी हो, ओवैसी ने मुस्लिम वोट के बिखरने से रोकने की भरपूर कोशिश की है और उसमें वह सफल भी रहे।

इस चुनाव में टीआरएस, एआईएमआईएम, बीजेपी और कांग्रेस पार्टी अलग-अलग चुनाव लड रही थी। लेकिन टीआरएस और एआईएमआईएम ने एक दूसरे के खिलाफ अपने उम्मीदवार को नहीं उतारी। उसकी वजह है कि सत्तारूढ़ सरकार को एआईएमआईएम का समर्थन प्राप्त है। जिन इलाकों में एआईएमआईएम की पकड़ मजबूत नही थी उन सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। एआईएमआईएम के खास गढ़ को छोड़ दें तो बची हुई सीटों पर मुकाबला बीजेपी बनाम टीआरएस ही रहा। हालाकि उन सीटों पर कांग्रेस के एवं अन्य उम्मीदवार भी थे लेकिन उनसे बीजेपी और टीआरएस के मुकाबले में कोई फर्क नहीं पड़ा।

एआईएमआईएम का कहना है कि, बीजेपी ने इस चुनाव में हिन्दू कार्ड खेलकर हिन्दू वोट का ध्रूवीकरण कर लिया। बीजेपी के फायर ब्रांड नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैली के बाद हैदराबाद की चुनावी लहर बदलती दिखी। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित पार्टी के कई शीर्ष नेताओ की उपस्थिति ने चुनाव को रोचक बना दिया है। क्षेत्रीय स्तर के चुनाव को राष्ट्रीय कवरेज मिलने से यह चुनाव कई मायनो में महत्वपूर्ण हो गया था।

रैलियों में लोगों की बढ़ती भीड़ ने बीजेपी के भीतर जीत की उम्मीद जगा दी थी। हालांकि बीजेपी इतनी बड़ी जीत दर्ज करेगी, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की होगी। बीजेपी की इस जीत को ऐतिहासिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है। क्योंकि इस जीत नेे बीजेपी के लिए दक्षिण भारत के राज्यों में संभावनाओं के द्वार खोल दिये।

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