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मंझधार में नीतीश सरकार: पाला बदलने के फेर में खेवनहार

गठबंधन सरकार के गठन में जिसकी जितनी सीटें, उसकी उतनी हैसियत। बहुमत का आंकड़ा पूरा करने के लिए छोटे-छोटे दलोें के साथ बनने वाली गठबंधन की सरकार में बनिस्पत यही तय फार्मूले अपनाये जाते रहे हैं। लेकिन छोटे दलों की बड़ी महत्वाकांक्षाओं से सरकार की नाव डूबती और पार लगती रही है। सत्ता में शामिल छोटे दल (कम सीट लाने वाले) इस बात को स्वीकार करने को कतई तैयार नहीं होते हैं कि उनकी हैसियत के अनुसार ही उन्हें सम्मान (मंत्रालय) दिया जा गया है। बल्कि उन्हें इस बात का हमेशा दंभ रहता है कि उनके जाने से सरकार गिर जायेगी। वह सरकार में किंग मेकर की भूमिका में हैं। विपक्षी दल भी उन्हें घोड़ी पर बैठाने को तैयार हैं। फिलहाल बिहार की सियासत में यही बानगी देखी जा रही है। धर्म और जाति के दम पर अवसरवादी राजनीति के झंडाबरदार ऐसे नेता प्रगतिशील समाज, राज्य और देश के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोशल-इंफ्रा सेक्टर में विकास के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में 2.18 ट्रिलियन बजट का लक्ष्य रखा जब तक बिहार में एनडीए की सरकार है, तो उम्मीद है कि लक्ष्य पूरा हो जायेगा। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में विकास की लकीर जो खींच दी गई है उससे बड़ी लकीर खींचने वाला फिलहाल कोई नहीं दिखाई देता। फिर इस सरकार को गिराने की इतनी क्या जल्दीबाजी है?  

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं और यह कब सियासी तूफान में तब्दील हो जाये कहना मुश्किल है। इन दिनों बिहार के सियासी गलियारों में यह चर्चा जोर पकड़ रही कि नीतीश कुमार की सरकार गिरने वाली है।

उसकी कई वजहें बतायी जा रही हैं। बिहार में वर्तमान एनडीए सरकार की चाभी सत्ता में शामिल दो छोटे दलों के पास हैं। जिनके अलग होते ही यह सरकार गिर जायेगी। अगर वह इस सरकार से अलग होकर अपने पुराने साथी, घटक के पास लौट जातें हैं तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि कयास यही लगाये जा रहे हैं कि विपक्ष द्वारा लॉलीपॉप के आश्वासन पर ये दोनों दल अब एनडीए में नहीं रहना चाहते हैं।

2020 के विधानसभा चुनाव में मनमुताबिक सीटें नहीं मिलने पर महागठबंधन छोड़कर हिन्दुस्तान अवामी मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने एनडीए का दामन थाम लिया था। इनकी हैसियत के अनुसार इन्हें सीटें दी गई और जनता ने इनके प्रत्याशियों को जीत दिलाकर विधानसभा भेज दिया। उन्हें वोट नीतीश कुमार के विकास कार्याे और उपलब्धियों पर भी मिला था। सरकार गठन के साथ ही मलाइदार मंत्रालय पर इनकी निगाहें थी।

इस सरकार में सबसे बड़े दल के रूप में भारतीय जनता पार्टी (74) है, तो लाजिमी है कि इस सरकार पर इस पार्टी का प्रभुत्व ज्यादा रहेगा। उसके बाद जदयू (43) की बारी आती है। फिर भी जदयू से नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया। गठबंधन की सरकार हमेशा ही सत्तालोलूप नेताओं की बलि चढ़ती रही है। क्योंकि यहां देशहित, राज्य हित, समाज हित से पहले निजी हित की संवेदनाएं जागती हैं। बिहार में जीतन राम मांझी नीतीश सरकार को बीच मंझधार में डूबाकर महागठबंधन का खेवनहार बनने के लिए उतावले दिख रहे हैं। बीजेपी और जदयू की सीटों को मिलाकर बहुमत का आंकड़ा पूरा नही होता है।

एनडीए के पास वर्तमान में 125 सीटें हैं जिसमें हम (4) और वीआईपी (4) का भी योगदान रहा। 243 विधानसभा सीटों वाला बिहार में बहुमत साबित करने के लिए 122 सीटों की जरूरत पड़ती है। अगर हम और वीआईपी में से किसी एक ने भी एनडीए से किनारा कर लिया तो सरकार गिरना तय है।

खबर यही है कि इन दोनों दलों को घर वापसी करने के लिए बड़े-बड़े ऑफर भी दिये जा रहे हैं। बहती गंगा में हाथ धोने के लिए ये दोनो बेताब दिख रहे हैं। इस संबंध में महागठबंधन के नेताओं के साथ कई दौर की वार्ता भी हो चुकी है।
हिन्दुस्तान अवामी मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी अब अपनी ही सरकार को नसीहत देने लगे हैं और यह जताने की कोशिश में है कि सत्ता की चाभी उनके पास है। शायद सरकार के सामने ये दोनों ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करना चाहते हैं जिससे बीजेपी या जदयू दोनों दलों में किसी से भी इगड़े की नौबत आ जाये। अर्थात ये दोनों एनडीए छोड़ने का बहाना ढूंढ रहे हैं।

नई सरकार के गठन के बाद से ही सहयोगी दलो के बीच मंत्रालय को लेकर रस्साकस्सी शुरू हो गई थी। अब इस गठबंधन की गांठ खुलती नजर आ रही है। नई सरकार के महज छह महीने ही हुए हैं। लेकिन विपक्ष के साथ-साथ सरकार में शामिल दल के नेता भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने नई-नई मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं।
नीतीश सरकार के सामने मांझी और सहनी द्वारा उत्पन्न की जा रही सियासी परिस्थिथियों के बाद विपक्षी ताल ठोक रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस ने भी मांझी और सहनी को लेकर कहा है कि अगर आप एनडीए में खुश नहीं हैं तो महागठबंधन में आ जाइये हम सभी मिलकर एक दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखेंगे। महागठबंधन के पास 110 सीटें हैं। जिसमें राजद (75), कांग्रेस (19) और वाम दल (16) हैं।

दूसरी ओर, राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाला मामले में जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद बिहार में अलग ही सियासी लहर चलने लगी है। शह-मात के खेल में माहिर लालू प्रसाद यादव अपने बेटे तेजस्वी यादव को हर हाल में मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहते हैं। इसके लिए शह-मात-दंड-भेद सभी नीतियां अपनायी जा रही है।
जानकार कह रहे हैं कि बिहार में आने वाले समय में बड़ा खेला होने वाला है। बहुमत के आंकड़ों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय जनता दल को ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का समर्थन लेने से गुरेज नहीं है। बिहार की सत्ता से एनडीए को बाहर करने के लिए सियासी जोड़-तोड़ शुरू हो चुकी है। इतंजार महागठबंधन छोड़कर एनडीए में गये हिन्दुस्तान अवामी मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी का हो रहा है।

बहरहाल, बीजेपी और जदयू के पास इतनी सीटें नहीं हैं कि बिहार में स्थिर सरकार दे सके। बहुमत का आंकड़ा पूरा करने के लिए एनडीए ने कुछ ऐसे दलों के साथ बिहार में साझेदारी कर ली है जिनका राजनीतिक चरित्र अवसरवादी नेता का है।
नियम, कानून, सिद्धांत, नैतिकता से इनका कोई मतलब नहीं है। एनडीए में शामिल इन नेताओं ने सरकार की कमजोरी भांप ली है कि उनके बिना इस सरकार का चलना मुश्किल है। इसलिए इनकी जितनी आवभगत हो रही है वह उतना ही भाव खा रहे हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोशल-इंफ्रा सेक्टर में विकास के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में 2.18 ट्रिलियन बजट का लक्ष्य रखा। जब तक बिहार में एनडीए की सरकार है, तो उम्मीद है कि लक्ष्य पूरा हो जायेगा। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में विकास की लकीर जो खींच दी गई है उससे बड़ी लकीर खींचने वाला फिलहाल कोई नहीं दिखाई देता। बिहार के जिस कोने में नजर दौड़ाइये, वहां आपको मूलभुत संरचनात्मक विकास दिख जायेगा। फिर इस सरकार को गिराने की इतनी क्या जल्दीबाजी है?  

बहरहाल, अगर यह सरकार गिरती है तो बेपटरी होते बिहार का साक्षी बनने के लिए तैयार रहिए। बिहार में चलती फिरती सरकार गिराने की साजिश राज्य के विकास के लिए नहीं रची जा रही है। बल्कि यह तो एक सनक है जिसे पूरा करने के लिए विपक्ष किसी भी हद तक जाने को तैयार है।

अब इस सरकार का भविष्य जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के हाथ में है। इन दोनों को अपनी बुद्धिमता का परिचय देना होगा कि उनके भूलवश या जानबूझकर उठाये गये कदम से बिहार का भविष्य दांव पर लग सकता है। अगर नयी सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी तो इसका सबसे बड़ा गुनाहगार नीतीश सरकार को गिराने वाले माने जायेंगे और इतिहास के काले पन्नों में उनका नाम दर्ज होगा।

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