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आस्ताद देबो : अस्त हुआ कंटेम्पररी डांस का एक सितारा

एक नृत्य का समकालीन सितारा जो नृत्य करता करता लुप्त हो गया है ।  नृत्य जगत में अलग पहचान बनाने वाले आस्ताद देबो को लोग सृजनात्मक नृत्य का उस्ताद भी कहते थे | आज़ादी के कुछ समय पहले 13 जुलाई 1947 को नवसारी, गुजरात में उनका जन्म हुआ | काफी लम्बा भ्रमण कर अन्त समय में माया नगरी मुंबई में उन्होंने आखिरी साँसें ली |

माया नगरी मुंबई से जैसे ही दुःख से भरा समाचार दिल्ली पहुंचा सभी कलाकार एकदम स्तब्ध रह गए । आस्ताद देबो दिल्ली के कलाकारों में अतिप्रिय थे । कंटेम्पररी कलाकारों के अलावा शास्त्रीय नृत्य के कलाकारों से भी उनका अत्यंत प्रेम था| शास्त्रीय नृत्यांगना अदिति मंगलदास ने भी उनके जाने पर दुःख प्रकट किया । भारतीय कला केंद्र से शोभा दीपक सिंह ने कहा कि आस्ताद देबो इस संसार को बहुत जल्दी अलविदा कह गए । हेलेन आचार्य जो संगीत नाटक अकादेमी की नृत्य सचिव हैं, कहा कि आस्ताद देबो कंटेम्पररी नृत्य के भारत में एक स्तम्भ थे ।

आस्ताद देबो सृजनात्मक नृत्य के अग्रणी नृत्यकार रहे हैं | उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा में, श्री इंद्र कुमार मोहंती  व् श्री प्रह्लाद दास जी द्वारा कत्थक नृत्य में ग्रहण की | बचपन से ही उन्हें नृत्य में लगाव रहा था, इसलिए बम्बई में वाणिज्य की शिक्षा ग्रहण करने के कार्यकाल के दौरान जब उन्होंने अमेरिकी संस्थान मरे लुई डांस कंपनी की एक प्रस्तुति देख कर इतना प्रभावित हुए की उन्होंने अपना मन बना लिया की अपना जीवन वह एक सृजनात्मक नृत्यकार बनकर ही गुज़ारेंगे | लगभग 1965 के आसपास उत्तरा आशा कूरलावला के संपर्क में आकर उन्होंने अपनी सृजनात्मक नृत्य की शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा ज़ाहिर की तो उत्तरा कूरलावला ने उन्हें मार्था ग्रैहम स्कूल ऑफ़ कंटेम्पररी डांस, न्यूयॉर्क का मार्ग दिखाया |

न्यूयॉर्क जाकर उन्होंने नृत्य की तकनीक हासिल की व कंटेम्पररी नृत्य की बारीकियों का अनुभव प्राप्त किया| इसके पश्चात इन्होने लंदन स्कूल ऑफ़ कंटेम्पररी डांस का अनुभव भी प्राप्त कर, मार्था ग्रैहम व् होसे लीमोन की नृत्य प्रणालियों का भी अध्यन किया | जर्मनी में पीना बॉश की वुपर्टल डांस कंपनी व् एलिसन बैकर चेस की पिलोबोलुस डांस कंपनी के साथ शारीरिक भाषा का नया अनुभव प्राप्त किया | भारत में अपना कार्य आरम्भ करने से पूर्व यह पाश्चात्य देशों में नृत्य का अनुभव प्राप्त करते रहे व इन्होने कई संरचनाएं की |

1977 में भारत आकर, गुरु ई कष्णा पानिकर जी का सानिध्य प्राप्त कर उनसे कथकली नृत्य की शिक्षा ग्रहण की। अपने आप को सिद्ध करने के लिए गुरुवायुर मंदिर में अपना कथकली नृत्य प्रस्तुत किया । आस्ताद का अनुभव काफी था तथा वे भारत में अपना कार्य करना चाहते थे । भारत आकर इन्होंने अपनी नृत्य शैली को तैयार किया जिसमें पाश्चात्य शैली के साथ साथ भारतीय शास्त्रीय नृत्यों का ऐसा सम्मिश्रण तैयार किया कि सभी उनके नृत्य से प्रभावित हुए । वे जन मानुष में अपनी ख्याति बढाने को इच्छुक थे । इसलिए वह हमेशा इस दिशा में कार्यरत रहते थे।

1986 में पियरे कार्डिन ने इन्हें एक ऐसा अवसर प्रदान किया कि वे U.S.S.R जाकर मास्को के बोलशोई थियेटर की मशहूर बैलेरीना माया प्लीसैत्सकाया के लिए एक नृत्य संरचना करें । सन् 1995 में टिम मैकार्थी सहित, दोनों की संयुक्त संरचना को लेकर इन्होंने भारत भ्रमण किया जिसके पश्चात इनके कार्य के लिये इन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया ।

20 वें Australian Deaf Olympics में 12 चेन्नई की बधिर कन्याओं व अपने शिष्यों सहित इनकी प्रस्तुति के बाद इनका सितारा आकाश में उज्जवल हो गया था तथा वह भारतीय जगत में भी अपना सिक्का जमा चुके थे। आस्ताद नृत्य की बारीकियों को पहचानते थे| वे अपने नृत्य में हमेशा तालों पर विशेष ध्यान देते व् हर नृत्य को एक अलग पहचान देने की उनकी कोशिश रहती थी | यही कारण है कि उनका नृत्य देश-विदेश के हर बड़े उत्सव में प्रस्तुत किया गया | एक समय था जब कहा जाता था कि उनका नृत्य न तो भारतीय है और ना ही पाश्चात्य | परन्तु जल्द ही उन्होंने इस भ्रम को लोगों के दिलों दिमाग से निकाल दिया तथा अपनी पहचान बनायी |

आस्ताद देबो एक सादे स्वभाव के मिलनसार व्यक्ति थे । 2005 में पद्मश्री से सम्मानित कलाकार होते हुए भी वे सभी से ऐसे मिलते थे जैसे उन्हें पहले से जानते हो। जब भी उनका दिल्ली आना होता वे नरेन्द्र शर्मा जी के संस्थान भूमिका में आया करते । श्री राम सेंटर में अपनी एक संरचना में उन्होंने अपने शरीर पर अनेकों जगमगाती हुई lights लगाकर अपना नृत्य प्रस्तुत किया था । सभी के साथ-साथ मैं भी उस प्रस्तुती को देखकर हैरान था। उस प्रस्तुति के लिए वे स्वयं हमें आमंत्रित करने आए थे । भरत शर्मा (वर्तमान निर्देशक, भूमिका संस्थान) से भी दिल्ली आने पर मिलकर घंटों बातचीत करते व बताते थे कि वे अपनी हर यात्रा से बहुत कुछ सीखते थे व उस जगह की संस्कृति व मिली शिक्षाओं को अपने नृत्य में ढालने की भरपूर कोशिश करते थे । भरत शर्मा का कहना है कि उन्होंने अपना एक मित्र खो दिया ।
सम्पूर्ण विश्व के कलाकारों के प्रिय रहे आस्ताद की मृत्यु से नृत्य जगत को एक घातक क्षति पहुंची है जिसकी संवेदना से सभी आहत हैं । वैसे तो पूरे विश्व में समकालीन नृत्यों में कार्य सामूहिक नृत्यों के रूप में हुआ। कुछ ही मंझे हुए कलाकार एकल नृत्य कर अपनी छवि कंटैम्पररी डांस की दुनिया में बना पाए जिसमें एक आस्ताद देबो थे। उन्होंने अपने जीवन की श्रेष्ठ प्रस्तुतियां एकल नृत्य में की क्योंकि वे कहते थे कि मेरे मन में जो है वह केवल मैं ही जानता हूँ तथा उसको भली भांति प्रकट कर सकता हूँ । उनके मन में मार्था ग्राहम की छवि एकल रूप में ही समाई थी। पाश्चात्य जगत से भी वे काफी प्रभावित रहे हैं ।

माया नगरी में रहते हुए उन्होंने मणिरत्नम तथा विशाल भारद्वाज जैसे दिग्गज निर्देशकों के साथ भी कार्य किया । एम एफ हुसैन की फिल्म  “मीनाक्षी- ए टेल ऑफ थ्री सिटीज़” में भी इनका कार्य सम्मिलित है। उनके नृत्यों की वेशभूषा काफी साधारण होती थी । वे हमेशा काफी खुले हुए वस्त्रों का प्रयोग करते थे। संगीत अपनी पसंद का रखते थे। भारतीय संगीत में वे गुन्डेचा बंधुओं की द्रुपद गायिकी के काफी मुरीद थे। भारतीय शस्त्र कलाओं से सम्बंधित नृत्य जैसे थंगटा, पुंग चोलम, छाऊ आदि से भी अत्यंत प्रभावित थे । 2002 में उन्होंने ‘आस्ताद देबो फाउंडेशन’ की स्थापना की ।

13 जुलाई 1947 में गुजरात से जो यात्रा शुरू की थी वह 10 दिसंबर 2020 को समाप्त हो गई । अंतिम समय में वे कुछ समय कैन्सर से लङते हुए हार गए तथा अपनी एक मात्र मित्र (संवाददाता) पद्मा अल्वा को अल्विदा कहकर इस संसार को त्याग गये । आस्ताद की जन्म स्थली गुजरात थी परन्तु कर्म स्थली उन्होंने माया नगरी मुंबई को बनाया। दिल्ली में जब भी कोई विशेष आयोजन में उन्हें आमंत्रित करता तो वह उसे प्रसन्नता से स्वीकार करते। आस्ताद के चले जाने से सभी की गहरा आघात पहुंचा । किसी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी । केवल 2 माह पूर्व ही उन्हें पता चला की उन्हें कैंसर हो गया है | वे टूट से गए थे, परन्तु बहुत जल्द ही उन्होंने हार मान ली क्योंकि मृत्यु से एक सप्ताह पहले ही उन्होंने अपनी मित्र को अलविदा कह दिया था | उन्हें यह एहसास हो चला था कि उनकी जीवन यात्रा में अब विराम आ गया है| अपने पीछे लाखों प्रशंसक तथा बहनों कमल और गुलशन को छोङ गए। नृत्य जगत में उनके योगदान को यह संसार सदैव याद रखेगा |

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