केन्द्र सरकार ने फर्स्ट ओरिजिनेटर को पकड़ने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों को ही सौंप दी
ओटीटी (ओवर द टॉप) सहित सभी सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए केन्द्र सरकार ने गाइडलाइन जारी कर दी है। सरकार ने ओटीटी संचालकों को हद में रहने की नसीहत दी है। अगर कुछ भी ऐसा होता है जो राष्ट्रहित और समाज के हित में नहीं है तो इसका खामियाजा ओटीटी संचालकों और निर्माता-निर्देशकों को भुगतना पड़ सकता है। आपत्तिजनक कंटेंट को 24 घंटे के अंदर हटाने को कहा गया है साथ ही वह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि आईटी एक्ट का उल्लंघन हुआ है या नही।
ऐसा किया जाना जरूरी भी था। क्योंकि इस देश में रचनात्मकता के नाम पर फूहड़ता और अश्लीलता परोसने की मानसिकता को अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़़ा जाने लगा था। जबकि किसी धर्म, पंथ, सम्प्रदाय के धार्मिक प्रतीकों, विश्वासों, भावनाओं, परम्पराओं का अपमान करना तो ये सभी अपनी फंडामेंटल राइट से जोड़ लिये थे। उनकी दलीलों को सुनने और उनके तेवर को देखने के बाद सरकार ने ओटीटी के साथ-साथ सोशल मीडिया को भी नाथने की प्रक्रिया पिछले महीने ही शुरू कर दी थी, जब वेब सीरीज तांडव को लेकर देशभर में कथित लिबरल और सेक्युलर लोग तांडव की तरफदारी करने लगे थे। जबकि, देश की बडी आबादी इनपर बैन और सख्त कार्रवाई करने की मांग कर रही थी। सरकार को ऐसा करने के लिए उन वेब सीरीज के निर्माता-निर्देशकों ने ही मौका दिया है जो मनोरंजन के नाम पर नंगापन, फूहड़ता, अश्लीलता परोसने और अनैतिक संस्कारों के वाहक बन रहे थे।
दूसरी ओर सोशल मीडिया पर ऐसी खबरों की भरमार हैं, जिनमें सत्यता कम और भ्रामकता ज्यादा होती हैं। वैसी खबरें उन्माद, दंगा और अराजकता फैलाने में सहायक बनने का काम करती हैं। आज के दौर मेें सोशल मीडिया का उपयोग कम और दुरूपयोग ज्यादा किया जा रहा है।
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी की निजता और सम्मान का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा है। भारत में व्हाट्सऐप, यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर मुख्य रूप से सक्रिय है। इंटरनेट की सुलभ उपलब्धता से लोगों तक सोशल मीडिया की पहुंच आसान हुई है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में व्हाट्सऐप के 53 करोड़ यूजर हैं। जबकि यूट्यूब के 44 करोड़, फेसबुक के 41 करोड़, इंस्टाग्राम के 21 करोड़ और ट्विटर के 1.75 करोड़ यूजर हैं।
जबकि, डिजिटल मीडिया अर्थात न्यूज पोर्टल का सटीक आंकड़ा भारत सरकार के पास नहीं है। केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने माना कि डिजिटल मीडिया पर रेगुलेशन नहीं होने की वजह से इसका पर्याप्त डाटा सरकार के पास नहीं है। सरकार का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह डिजिटल मीडिया का भी सेल्फ रेगुलेशन बनाना होगा। यह अच्छी बात है और ऐसा होना भी चाहिए। डिजिटल मीडिया पर रेगुलेशन बनने से एक फायदा यह होगा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह इसे भी तरजीह दी जाने लगेगी। क्योंकि, शासनिक एवं प्रशासनिक स्तर के कई विभागों में डिजिटल मीडिया के पत्रकारों को एंट्री नहीं दी जाती। शासन-प्रशासन को यह रवैया बदलना चाहिए। सरकार ने इसी बहाने डिजिटल मीडिया के अस्तित्व को स्वीकारा है।
बहरहाल, ओटीटी सहित सभी सोशल मीडिया बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ रहे हैं। इसे अपने हितों के अनुसार सभी इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि गाइडलाइन बना देने से यह नियंत्रित हो जायेगा इसपर संदेह है, क्योंकि यह कौन तय करेगा कि उक्त कंटेंट आपत्तिजनक है। आपके विचार मुझे पसंद नहीं, मेरे विचार आपको पसंद नहीं, यह वैचारिक भिन्नता है। आपत्तिजनक कंटेंट का आधार तय कर पाना सरकार के लिए भी मुश्किल काम है।
सरकार ने सोशल मीडिया यूजरों को आगाह कर दिया है कि भ्रामक खबरों और अश्लीलता फैलाने वालों को अब ट्रैक करना आसान हो जायेगा। क्योंकि इसकी जिम्मेदारी सरकार ने सोशल मीडिया कंपनी के मालिकों को ही सौंप दी है। केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोशल मीडिया कंपनियों को यूजर का वैरिफिकेशन अनिवार्य करने को कहा है।
आने वाले दिनों में सोशल मीडिया पर यूजर वैरिफिकेशन टूल्स का आना तय है। क्योंकि सरकार उन कंपनियों से ही यह सवाल करेगी कि भ्रामक खबरों अथवा वीडियो पोस्ट करने वाला यूजर कौन है। विशेषकर, फर्स्ट ओरिजिनेटर का पता लगाना अब आसान हो जायेगा। अर्थात सबसे पहले आपत्तिजनक कंटेंट, वीडियो, कार्टून को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले यूजर को ट्रैकिंग कर कंपनी पकड़ लेगी। इससे यह भी पता लगाना आसान हो जायेगा कि, अगर विदेशों से कोई भ्रामक कंटेंट, वीडियो, कार्टून पोस्ट किया गया है तो उसे भारत में सबसे पहले किसके पास भेजा गया और उसने उसे कहां-कहां फैलाया।
यकीन मानिए, सरकार ने उपद्रवियों और सोशल मीडिया का दुरूपयोग करने वालों पर बहुत लम्बा जाल बिछा दिया है और उसे पकड़ने की जिम्मेदारी भी कंपनियों पर थोप दी है। केन्द्र ने उन सोशल मीडिया कंपनियों पर नकेल कस दी है जो कंटेट की कंट्रोलिंग पर सरकार को ही नसीहत दे रहे थे। अगर कंपनियां केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गये नियमों का पालन नहीं करती है तो उनपर आईटी एक्ट के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जायेगी।
विदित हो कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि सोशल मीडिया को रेगुलेशन के दायरे में लाया जाये। ऐसा होने पर भ्रामक खबरों और अश्लील वीडियो के पोस्ट पर अंकुश लगेगा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुकूल दिशा-निर्देश जारी कर दी है जिसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है।
सोशल मीडिया गाइडलाइन की मुख्य बातें –
1. सभी सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करने होंगे जिससे शिकायतों का निपटारा जल्द से जल्द हो सके।
2. सोशल मीडिया कंपनियों को हर छह महीनें में शिकायतों और कार्रवाई का ब्यौरा केन्द्र सरकार को दिखाना पड़ेगा।
3. सोशल मीडिया कंपनियों को केन्द्र सरकार की ओर से नोटिस मिलने पर 15 दिन के अंदर उसका जवाब देना होगा।
4. ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को दर्शकों की उम्र के हिसाब से कैटेगरी बनानी होगी।
5. आपत्तिजनक कंटेंट को 24 घंटे के अंदर हटाना होगा।
6. फर्स्ट ओरिजिनेटर, अर्थात भ्रामक पोस्ट डालने वाला पहला यूजर कौन है, इसकी जानकारी सरकार को देनी होगी।
7. सोशल मीडिया कंपनियों को यूजर्स के लिए वैरिफिकेशन की व्यवस्था करनी होगी।
8. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह डिजिटल मीडिया को भी गलती करने पर माफी प्रसारित करनी होगी।
9. ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को भाषा एवं हिसात्मक दृश्य को लेकर भी कैटेगरी बनानी होगी।
10. केन्द्र सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन तीन महीने में लागू कर दी जायेगी।