किसान आंदोलन बनाम मोदी विरोधी एजेंडा : विपक्ष के लिए सियासी जमीन तैयार
1 min readपरत-दर परत आंदोलनकारी हो रहे बेनकाब
मोदी सरकार द्वारा बनाये गये कृषि कानूनों के खिलाफ चलाये जा रहे किसान आंदोलन की धार अब कुंद होती दिख रही है। पिछले तीन महीने में दो बार भारत बंद, रेल रोको अभियान, चक्का जाम, सड़क जाम और इसपर बेजा राजनीति के बाद भी किसान आंदोलन के आयोजकों को कोई फायदा न होकर उनपर कई तरह के आरोप लग रहे हैै। इसलिए किसान अपनी रणनीति बदलने पर विचार कर रहे हैं। अब बीजेपी को राज्य स्तरीय घेरने की योजना बनायी जा रही है और इसकी शुरूआत उत्तर प्रदेश से की जा रही है। भारतीय किसान यूनियन ने 24 फरवरी को बाराबंकी में और 25 फरवरी को बस्ती में महापंचायत आयोजित करने का फैसला किया है। इन दो जिलों में महापंचायत के आयोजन के बाद आगे की रणनीति तय की जायेगी।
पंजाब से शुरू हुआ यह आंदोलन हरियाणा, दिल्ली-गाजीपुर बॉर्डर के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अपनी जद में लेने जा रहा है। यह मामला केन्द्र सरकार से भले ही नहीं सुलझ सका लेकिन इसकी कीमत भाजपा नेतृत्व राज्य सरकारों को चुकानी पड़ सकती है। अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होनेे हैं और विपक्ष की यही कोशिश है कि बीजेपी नेतृत्व राज्यों में किसान आंदोलन की आंच हर हाल में पहंचायी जाये। इस आंदोलन की शुरूआत में किसान नेता राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं से दूरी बनाकर चल रहे थे। लेकिन अंदरखाते की सांठ-गांठ अब खुलकर सामने आ रही है। इसलिए किसान आंदोलन के प्रति जनमानस की जो सोच थी वह अब बदलती दिख रही है। हाल के दिनों की कुछ घटनाओं के बाद किसान आंदोलन पर सवाल उठने लगे हैं।
किसान आंदोलन के नाम पर हिंसा, अराजकता, देश विरोधी गतिविधियां और अब अंतर्राष्ट्रीय साजिश का खुलासा होने पर देश की जनता की संवेदनाए और सहानुभूति भी आदोलनकारी खो रहे हैं। गणतंत्र दिवस के दिन लाल किला पर किसान आंदोलन के नाम पर जो कुछ भी किया गया वह आजाद भारत के इतिहास में काला दिवस के रूप में याद किया जायेगा।
किसान आंदोलन पर शुरू से ही कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। खालिस्तानी कनेक्शन, विदेशी फंडिंग, विदेशी हैंडलर और आंदोलन के नाम पर देश विरोधी गतिविधियां, जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण गणतंत्र दिवस के अवसर पर देखने को मिले।
वहीं, अंतर्राष्ट्रीय सेलेब्रिटियों से ट्वीट करवाकर किसान आंदोलन के कथित विदेशी हैंडलरों ने इस आंदोलन की साख पर बट्टा लगा दिया। शायद उनकी यही मंशा होगी कि ऐसा करके अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का ध्यान इस आंदोलन की तरफ खींचा जाये, लेकिन परिणाम इसका उल्टा हुआ है। अब परत-दर-परत जो तथ्य सामने आ रहे हैैंं उससे यह संकेत मिल रहे हैं इस आंदोलन की आड़ में भारत को आंतरिक एवं बाह्य स्तर पर छति पहुंचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय साजिश रची जा रही है।
बाराबाडोस की सिंगर रिहाना, पोर्न स्टार मियां खलीफा और पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनवर्ग के ट्वीट से किसान आंदोलन को कोई फायदा हुआ नहीं बल्कि इस आंदोलन की जमीन हिल गई है।
खबर यह भी है इन सेलेब्रिटियों को ट्वीट करने के लिए मोटी रकम दी गई है। कई मीडिया चैनलों और सोशल मीडिया ने इसका पूरा कच्चा चिट्ठा खोल दिया है। साक्ष्यों के आगे कुर्तकों की कोई जगह नहीं होती। जबकि, ग्रेटा थनवर्ग के सोशल मीडिया एकाउंट से अपलोड की गई टूल किट से साजिश का पूरा भांडा फोड़ हो गया। टूलकिट मे किसान आंदोलन के बहाने की मोदी सरकार के खिलाफ पूरी रणनीति का जिक्र है।
टूल किट के अनुसार, प्लान ए से डी तक में जो कदम उठाये जायेंगे उसके तहत मोदी सरकार के बहाने भारत की छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करना है। जिसका सीधा असर मोदी सरकार पर पड़ेगा। अगर मोदी सरकार किसानों की मांग पूरी कर देती है तो भी इस आंदोलन को जिंदा रखना है, सिर्फ इसका स्वरूप बदल जायेगा।
अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि जनता में खराब होती है तो उसका प्रभाव आने वाले दिनों में चुनावों पर पड़ेगा। इसपर गहराई से मंथन किया जाये तो केन्द्र की सत्ता से नरेन्द्र मोदी को हटाने के लिए यह सारा खेल खेला जा रहा है और इसके लिए अब अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों का सहारा लिया जा रहा। इसकी फंडिग कौन कर रहा है, उन सेलेब्रिटियों को ट्वीट करने के लिए मोटी रकम किसने दी है, इसकी सारी डिटेल आप गूगल से खंगाल सकते हैं। अगर आपको भारतीय मीडिया पर भरोसा नहीं है तो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट भी पढ़ लीजिए। मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन के रूप में जो साजिश उभरकर आयी है, उसके बाद इस आंदोलन की हिमायत करने वाले लोग कुछ भी बोलने से बचते दिख रहे हैं।
इस टूल किट के माध्यम कई एक्टिविस्टों के नाम सामने आने के बाद उन्हें बचाने के लिए लिबरल और सेक्युलर गैंग सक्रिय हो चुका है और इस तमाशे को पूरे देश की जनता देख रही है। टूलकिट में पर्यावरण एक्टिविस्ट दिशा रवि, निकिता जैकब, और शांतनु के नाम सामने आने के बाद पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया है। जबकि ग्रेटा थनवर्ग, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित स्वीडन की पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं। वहीं कनाडा में जन्में एमओ धालीवाल पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के फाउंडर है। पीजेएफ को खालिस्तान समर्थक बताया जाता है। अब यह कहना उचित होगा कि इस आंदोलन का स्वरूप बदल चुका है और अब इसका मुख्य उद्देश्य मोदी सरकार के खिलाफ सियासी जमीन तैयार करना है।
बहरहाल, किसान आंदोलनकारियों की हिमायत करने वाले लोग किसान आंदोलन से कन्नी काटने लगे हैं। कानूनी लफड़ों से बचने के लिए कई किसान संगठनों ने इस आंदोलन से खुद को अलग कर लिया। जबकि आंदोलनकारियों को भारत सरकार के खिलाफ उकसाने वाले विरोधी नेता बीच का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। वह कानून के दायरे में रहकर आंदोलन को जायज ठहरा रहे हैं।
जबकि, भारत सरकार के मंत्री और बीजेपी के प्रवक्ता टीवी पर एवं अन्य माध्यमों से बार-बार कह रहे हैं कि इस आंदोलन में अराजक तत्वों ने घुसपैठ कर ली है। सरकार को नीचा दिखाने के लिए आंदोलनकारी न सरकार की बात मान रहे हैं न कोर्ट के आदेशों को स्वीकार कर रहे हैं। विदित हो कि सुप्रीम कोर्ट की बनायी कमिटी को भी इन आंदोलनकारियों ने नकार दिया।
किसान आंदोलन का मुख्य चेहरा राकेश टिकैत गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं। कभी घड़ियाली आंसू बहाकर वह सहानुभूति बटोरने का प्रयास करते हैं तो कभी चक्का जाम करने की धमकी देते हैं। खबर है कि केन्द्र सरकार को सबक सिखाने के लिए और भारतीय जनता पार्टी को जमीनी स्तर पर नुकसान पहुंचाने की तैयारी की जा रही है। इसका पूरा फायदा विपक्ष उठाना चाहेगा। किसान आंदोलन ने विपक्ष को एक धूरी पर आने का पुनः बड़ा अवसर प्रदान किया है।