Tuesday, November 4, 2025
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पितृपक्ष : पितरों के स्वर्ग का पर्व

पितरों को मोक्ष दिलाने का पर्व पितृपक्ष गयाजी में 15 दिनों के लिए बीते 9 सितंबर से आरंभ हो गया है। इन 15 दिनों के भीतर श्रद्धालु अपने पितरों को पिंडदान, तर्पण तथा अपनी श्रद्धा भेंट करेंगे। पितृपक्ष मेला गयाजी में सत्रह दिनों तक चलता है। भिन्न-भिन्न तिथियों पर पिंड दान करने का विशेष विधान है।

पहला दिन अनंत चतुर्दशी 9 सितंबर 2022 को प्रथम दिन पुन:पुना नदी घाट पटना तथा गयाजी में गोदावरी श्राद्ध ; 10 सितंबर को फल्गु पवित्र नदी के जल से तर्पण एवं श्राद्ध; 11 सितंबर को ब्रह्म कुंड, प्रेतशिला, रामशिला और कागबलि; 12 सितंबर को उत्तर मानस, उदीची, कनखल,दक्षिण मानस, जिह्वालोल, और गदाधर भगवान को पंचामृत स्नान; 13 सितंबर को सरस्वतीतीर्थ तर्पण, मतंगवापी धर्मारण्य एवं बोधगया में बोधि वृक्ष का दर्शन; 14 सितंबर को ब्रह्मसरोवर पर श्राद्ध, तारक ब्रह्मदर्शन एवं आम्र सिंचन; 15 सितंबर को विष्णुपद, रुद्रपद एवं ब्रह्मपद पर श्राद्ध;16 सितंबर को कार्तिकपद दक्षिणाग्नि पद,सूर्य पद; 17 सितंबर को चंद्रपद, गणेशपद,सभ्याग्निपद ; 18 सितंबर को मतंगवापी पद, क्राँचपद,इन्द्रपद, अगस्त्यपद एवं कश्यपपद; 19 सितंबर को रामगया और सीता कुंड; 20 सितंबर को गयासिर एवं गयाकूप; 21 सितंबर को मुण्डपृष्ठा,आदिगदाधर और धौतपद पर चाँदी दान; 22 सितंबर को भीमगया श्राद्ध, विष्णु का दर्शन पूजन एवं मंगला गौरी दर्शन,गो प्रचार तथा गदालोल श्राद्ध; 23 सितंबर को विष्णु चरण पूजन, फल्गु तट पर दूध से तर्पण और देव दर्शन; 24 सितंबर को सुबह वैतरणी तर्पण एवं गोदान 25 सितंबर को अक्षय वट श्राद्ध एवं सुफल की प्राप्ति। अंतिम 26 सितंबर 2022 को गायत्री घाट पर दही चावल का पिंडदान होता है।

गया जी को मोक्ष प्राप्ति का पुण्य भूमि माना गया है। इन दिनों श्राद्ध और तर्पण कर पितृपक्ष में पितरों को तृप्त करने का विधान है। मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। इस धरती को साक्षात् श्री हरि विष्णु का वास माना गया है। मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में फल्गु नदी का बहुत बड़ा महत्व है। फल्गु नदी में राजा दशरथ को उद्धार सीता माता द्वारा बालू का पिंडदान करने से ही हो गया था।

मान्यता है कि राजा दशरथ को अपने पुत्र बधू सीता द्वारा बालू का पिंडदान दे देने से ही उद्घार हुआ था,क्योंकि पिंड दान का सामान लाने के लिए श्री राम और लक्ष्मण बाजार गए थे, इसी बीच राजा दशरथ ने अपने हाथ को फल्गु के बालू में निकाल कर अपनी पुत्रवधू से पिंड देने को कहा। अब तक श्री राम लौट नहीं पाये थे। तब लाचार उनकी पुत्रवधू सीता ने बालू का ही पिंड उनके हाथों में दे दी और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई ।

गयाजी में भगवान विष्णु का चरणचिन्ह विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में है। यह मंदिर इसीकारण प्रसिद्ध है। लोगों को यहीं से मोक्ष प्राप्त होता है। मुक्ति प्राप्ति के लिए श्राद्ध के समय एवं उपरांत गाय, कुत्ता और कौए को खाने के लिए कुछ अंश अलग से निकाला जाता है, कारण ये जीव यमराज के करीबी माने गए हैं।

वेदों और पुराणों के अनुसार मान्यता है कि श्रद्धा युक्त होकर जब प्राणी मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध करते हैं तो इससे न केवल पितरों को, बल्कि पशु पक्षियों को भी तृप्ति प्रदान होती है। पितृऋण से मुक्त होकर प्राणी सुफल को प्राप्त करता है। हिन्दू धर्म में पुत्र का कर्तव्य तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में माता-पिता की सेवा कर उनकी मृत्यु के उपरांत वह उनकी मृत्यु तिथि पर गयाजी में श्राद्ध,तर्पण और पिंडदान करता है। यह पितरों के मोक्ष प्राप्ति का सूचक माना गया है।

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