Tuesday, November 4, 2025
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#Me Too : शख्सियत पर आंच

हॉलीवुड से चला मी टू का वायरस भारत में बॉलीवुड ही नहीं बल्कि मीडिया, कॉरपोरेट सेक्टर और खेल जगत मेें भी पहुंच चुका है। अब तक दर्जनों चेहरे सामने आ चुके हैं जिनपर उनके सहकर्मियों अथवा महिला मित्र ने यौन शोषण के आरोप लगाये हैं। आने वाले दिनों में मी टू की चपेट में और कितने मीडिया मठाधीश, कथित बुद्धिजीवी, कथित गॉडफादर, कॅरियर मेकर और यूथ आइकन सामने आएंगे अभी यह कहना मुश्किल है। जबकि, मी टू मामले में जांच प्रणाली और न्यायिक व्यवस्था के सामने भी कई चुनौतियां है, क्योंकि आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत नहीं हैं। सालों बाद ऐसे मामलों की सत्यता की जांच करना बड़ी चुनौती है।

सम्मान, कॅरियर और भविष्य संवारने की आड़ में स्ट्रगलर के साथ यौन शोषण करने वाले कई मीडिया मठाधीश और बॉलीवुड की जानी-मानी हस्तियों के चेहरे से नकाब उतरने लगे हैं। अब तक दर्जनों चेहरे सामने आ चुके हैं जिनपर उनके सहकर्मियों अथवा महिला मित्र ने यौन शोषण के आरोप लगाये हैं।

बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता द्वारा अभिनेता नाना पाटेकर पर शूटिंग के दौरान लगाये गये यौन शोषण के आरोप ने अब एक अलग रूप अख्तियार कर लिया है। इस मामले में बॉलीवुड की शीर्ष हस्तियां कुछ भी बोलने से बचना चाह रही हैं। अगर वह इस प्रसंग में कुछ बोल भी रहे हैं तो बहुत ही नाप तौलकर।

बहरहाल, इससे पहले भी बॉलीवुड के अभिनेताओं, निर्देशकों और निर्माताओं पर अभिनेत्रियों द्वारा दैहिक शोषण के आरोप लगाये जा चुके हैं लेकिन इस बार बॉलीवुड की चमक दमक भरी दुनिया का स्याह पक्ष सबके सामने आ रहा है। बालीवुड के बाद मीडिया में भी मी टू अभियान चल रहा है और इस अभियान में कई ऐसे नाम सामने आएं हैं जिन्हें एक आदर्श केे रूप में देखा जाता है। ऐसे लोग कुछ के लिए आइकन हैं और कुछ लोगों के लिए तो गॉडफादर हैं। लेकिन उनकी करतूतों की परतें खुलनी शुरू हो गई है तो सभी हैरान हैं।

बहरहाल, आर्दशों, सिद्धांतों और नैतिकता की बात करने वालों की जब पोल खुल रही हैं तो लोग चटकारे ले रहे हैं। नाना पाटेकर, एम.जे. अकबर, विनोद दुआ, साजिद खान, आलोक नाथ, विकास बहल, विवेक अग्निहोत्री, सुभाष घई, अनु मलिक जैसे कई लोग मी टू के कारण बदनाम हो चुके है। इन सभी ने अपने-अपने क्षेत्रों में खास मुकाम हासिल किया है। लेकिन मी टू ने उनकी शख्सियत को दागदार कर दिया है। हॉलीवुड से चला मी टू का वायरस भारत में बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि मीडिया, कॉरपोरेट सेक्टर और खेल जगत मेें भी पहुंच चुका है। बीसीसीआई के एक शीर्ष अधिकारी पर यौन शोषण के आरोप लगे हैं। ऑफिस कल्चर तो मी टू को लेकर पहले से ही बदनाम है। हालांकि सरकार ने ऑफिस में कार्यअवधि के दौरान महिलाओं पर होने वाले शोषण को रोकने के लिए कई कानून भी बनायी है, लेकिन महिलाओं पर यौन शोषण आज भी जारी हैं। बहरहाल, मी टू को लेकर भारत में कई दिग्गज बदनाम हो चुके हैं। जिनमें कुछ ने अपने उपर लगाये गये आरोपों को स्वीकार कर लिया है। लेकिन कुछ ने उन आरोपो को सिरे से खारिज किया कर दिया है। मी टू अभियान अब एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है।

अपनी चाहतों को साकार करने की कीमत चुकाने वाली वह युवतियां अब खुलकर अपना पक्ष रख रही हैं जिनका शोषण किया गया है। कुछ मामले तो 20-25 साल पुराने हैं। बहरहाल, आने वाले दिनो में मी टू की चपेट में और कितने मीडिया मठाधीश, कथित बुद्धिजीवी, कथित गॉडफादर, कॅरियर मेकर और यूथ आइकन सामने आएंगे अभी यह कहना मुश्किल है। लेकिन इतना तो तय है कि इस आग की आंच इमानदार शख्सियत पर भी पड़ सकती है। अब तो मी टू की खौफ से वे सभी सहमे-सहमे दिख रहे हैं जिनकी आवाज में रौब होती थी और बॉडी कें अंदाज में हेकड़ी दिखती थी। चाहे वह मीडिया क्षेत्र से हों या बॉलीवुड से। जबकि वही व्यक्ति राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों पर अपना व्यक्तिगत नजरिया मीडिया के सामने रखकर मामला कंट्रोवर्सी कर देता था। चाहे वह टॉलरेंस का मुद्दा हो, कश्मीर का मुद्दा हो, आतंकवाद का मुद्दा हो या राष्ट्रीय हित से जुड़े अन्य मुद्दे। उनका नजरिया, उनका बयान मीडिया से लेकर समाज तक को प्रभावित करता था। लेकिन मी टू मामले में उनकी खामोशी से कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

आलोचक यह भी कह रहे हैं कि गड़े मुर्दे अब क्यों उखाड़े जा रहे हैं। अगर किन्ही के साथ किसी सहकर्मी या वरिष्ठों ने ज्यादती की है या यौन शोषण किया है तो उस समय आवाज क्यों नहीं उठायी गई। आश्चर्य की बात है कि मी टू के मामले में कई हस्तियां खामोश है और लोग उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार अब भी कर रहे हैं। यौन शोषण के आरोप में कुछ हस्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई और जांच प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। लेकिन कानून के जानकारों का कहना है कि यह जटिल मामला है। कानूनी एवं न्यायिक प्रक्रियांओं को फैसले तक पहुंचाने में सबूतों और गवाहों की अहम भूमिका होती है। इस मामले में पीड़िता और याचिकाकर्ता के पास आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत नहीं हैं। जबकि जिनपर आरोप लगाये गये हैं वे इसे सिरे से खारिज कर रहे हैं। मी टू मामले में जांच प्रणाली और न्यायिक व्यवस्था के सामने भी कई चुनौतियां है। ऐसे मामलों की सत्यता की जांच करना आसान नहीं है।

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