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भारत में धर्म रक्षार्थ ब्राह्मण का योगदान !  पार्ट-1

सदियों से ब्राह्मण जिस पहचान के साथ जी रहा है उसमें उसकी दृढ़ संकल्प, बलिदान और धर्म के प्रति अपार निष्ठा शामिल है।
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हजारों वर्षो की गुलामी और हिन्दू धर्म के प्रति मुस्लिम आक्रांताओं के अत्याचार के बावजूद अगर सनातन से जुड़ी मान्यताएं, परम्पराएं और वैदिक पूजा पद्धतियां आज भी यथावत हैं, तो यह धर्म के प्रति ब्राह्मणों के संकल्प, समर्पण और त्याग की देन है।

भारत में धर्म, कला-संस्कृति तथा शिक्षा के क्षेत्र में ब्राह्मण का बड़ा योगदान है। ब्राह्मण अमीर हो या गरीब उनकी पहचान धार्मिक कर्मकांड, शिक्षा और संस्कार से है। ब्राह्मण समाज हिन्दू धर्म, कला-संस्कृति और शिक्षा का ध्वज वाहक रहा है। भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं को पीढी-दर पीढ़ी पहुंचाने में ब्राह्मण के योगदान के समकक्ष कोई नहीं टिकता।

समय के साथ कई जातियों ने अपने आचार, व्यवहार और चरित्रों में बदलाव करके परिस्थितियों के अनुकूल ढलने का प्रयास किया है। लेकिन वैदिक युग से आज तक ब्राह्मणों ने धर्म की रक्षा के लिए चुनौतियों का सामना किया है।

ब्राह्मण और वेद को अलग नही किया जा सकता है। यह शास्वत है कि शास्त्र सम्मत धार्मिक कर्मकांड के लिए योग्य होना जरूरी है। यह विशेषताएं ब्राह्मण जाति में अधिक देखी जाती है। हालांकि अब कई सामाजिक संगठन भी पूजा पाठ, शादी-विवाह और धार्मिक कर्मकांड करा रहे हैं। लेकिन भारत में उन्हें वह सफलता हासिल नहीं हो पायी, जो जन्मजात ब्राह्मण को है।

भारत में ब्राह्मण को उनकी योग्यता और कर्मकांडी होने के कारण समाज में विशेष सम्मान हासिल है। सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक मूल्यों और शास्त्रानुकूल नियमों को धर्म सूत्र कहा जाता है। ब्राह्मण को धर्म सूत्र को पालन करना अनिवार्य है। जो ब्राह्मण धर्म सूत्र का पालन नहीं करते उन्हें धार्मिक कर्मकांड को आजीविका बनाना मुश्किल होता है।

ब्राह्मण वेदों से प्रेरणा लेते हैं। ब्राह्मण समाज को भारत में अर्चक समाज भी कहा जाता है। पूजा-अर्चना, अनुष्ठान और दैवीय संस्तुति ही इनकी आजीविका का भी आधार हैं। एक संयमित जीवन ब्राह्मण के लिए जरूरी है। जो ब्राह्मण ऐसा नहीं करते वह अर्चक समाज से खुद को बाहर कर लेते हैं। हालांकि वह अपनी योग्यता के बल पर अन्य क्षेत्रो में भी सम्मानजनक नौकरी करते हैं।

विषम परिस्थितियों में भी ब्राह्मणों ने अपने संस्कार और शिक्षा को कभी नहीं छोड़ा। इसलिए आप गौर करें तो सरकारी अथवा प्राइवेट नौकरियों में अपनी योग्यता के बल पर शीर्ष पायदान पर ज्यादातर ब्राह्मण ही मिलेंगे। वहां तक पहुंचने के लिए ब्राह्मण को कभी आरक्षण की जरूरत नहीं पड़ी। सदियों से ब्राह्मण जिस पहचान के साथ जी रहा है उसमें उसकी दृढ़ संकल्प, बलिदान और धर्म के प्रति अपार निष्ठा शामिल है।

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