ऐतिहासिक विरासतों को समेटे हुए बौद्ध कालीन गांव “मैगरा”
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तथागत बुद्ध इस क्षेत्र में हमेशा आते रहे हैं,इतना ही नहीं यहां तक कि बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद सर्वप्रथम बुद्ध इसी पहाड़ी पर आए और यहां के बाद वे सहस्राराम होते हुए ‘मृगडाव’ वाराणसी गए थे और “धम्मचक्र परिवर्तन” किया था। यही कारण है कि आज ढाई हजार वर्षों के बाद भी यही एक मात्र स्थल पूरे भारत में “बुद्ध पहाड़ी” के नाम से और पंचवर्गीय भिक्षुओं का स्थल “पचमह(पचमठ)” आजतक अस्तित्व में है।
प्राचीन काल में मैगरा माया नगरी, माया ग्राम से जाना जाता था, जो एक बौद्ध कालीन गांव था। यह गांव बौद्ध काल में पचमह के अंतर्गत पांच गांव आते थे- उसमें मैगरा, प्राणचक,देवजरा,पचमठ और छक्करबंधा है। ये सारे पुरातात्विक ऐतिहासिक स्थलें डुमरिया एवं इमामगंज प्रखंड के हैं। मैगरा का कुछ इतिहास हस्तलिखित मुझे मिली थी,जो उन दिनों भारती कुटीर में रखी थी। पचमठ अथवा पचमह का इतिहास अति गौरव शाली रहा है,किंतु ब्रिटिश अथवा स्थानीय खोजकर्ताओं के द्वारा ये स्थल सुदूर जंगलों,पहाड़ों और नदियों के बीच घीरे होने के कारण अब तक उपेक्षित रहे।
इसके बारे में मैगरा के ही रहने वाले संस्कृत तथा ज्योतिष के जानकार तपेश्वर शास्त्री जो 1964- 65 में मेरे साथ मैगरा उच्च विद्यालय में संस्कृत के शिक्षक थे और मैं उस विद्यालय में भूगोल का शिक्षक था, तो इन स्थलों की जानकारी मैंने उनसे चाही थी। उन्होंने इस कड़ी में बताया कि पचमह अर्थात पांच गांव जहाँ बुद्ध जाकर उपदेश दिये, जिसमें मैगरा, बुद्ध व बुधनी पहाड़ी, पचमा व पचमह, देवजरा, चक्रबंदा यानी छक्करबंधा और प्राणचक है,वे सभी के सभी बुद्धमय बन गए।
उन्होंने एक घटना और बतायी कि देवजरा से आधा किलोमीटर उत्तर प्राणचक के शिरे पर जो बुद्ध व बुधनी पहाड़ी कहलाता है, उसके ऊपर पहाड़ी पर कुछ चरवाहे बैठे थे, वे बैठे-बैठे जमीन को खोदने लगे। तब एकाएक वहां ईंट की बनी आयताकार संरचना के कुछ अंश दिखायी दी। यह देख वे सभी आश्चर्य में पड़ गए। उत्सुकताबस तब चरवाहों ने कुदाल मंगवायी और उस स्थल की खुदाई करने लगे, तो वहां आयताकार मंदिर की आकृति मिली। फिर और भी खुदाई की तो उस स्थल पर मंदिर के गर्भ गृह में ग्रेनाइट पत्थर की भव्य भगवान बुद्ध की 4.30 फीट ऊंची मूर्ति मिली। यह देखते ही सभी खुशी से झूम उठे और इसकी खबर पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई। भारी संख्या में वहां लोग उपस्थित हो गए और पूजा-अर्चना तथा चढ़ावा चढ़ने लगे।
यह सब देख और उसकी सुरक्षा को जानकर वहां के जमींदार अखौरी गोविंद प्रसाद ने इसे सरकार को सूचना दी। तब पुरातत्व विभाग ने यहां से उस मूर्ति को उठा ले गई। पता नहीं अब वह मूर्ति कहां पड़ी है। अभी तक स्पष्ट पता नहीं चल पाया है।
दूसरी घटना पचमठ गांव से पूरब 13वीं व14वीं शताब्दी का बना प्लास्टर निर्मित मंदिर के अवशेष पाए गये, जिसमें अनेक भंग मूर्तियां तथा समतल बना अवशेष मिला है।
कहा जाता है कि मोहम्मद गोरी ने इसे भंग करवाया था। उसे पता चला था कि यहां की बुद्ध मूर्ति के नीचे स्वर्ण मुद्राएं रखी हैं। आज ग्राम वासियों ने उसे सुरक्षित रखते हुए नये मंदिर का निर्माण करवाये हैं, जिसमें प्राचीन काल की मूर्तियां रखी पड़ी हैं। चक्रबंधा जो अब छक्करबंधा के नाम से प्रसिद्ध है, वहां बुद्ध उपदेश देने के क्रम में आगे बढ़ते हुए गए थे, वे सारे के सारे गांव बुद्धमय बन गए। आज भी वहां बुद्ध के अवशेष बहुतायत से मिलते हैं ।
इन सारी बातों का जिक्र एक हस्तलिखित पुस्तक में मिला था, जो भारती कुटीर में सुरक्षित थी। वहां बुद्ध से जुड़े अन्य बहुमूल्य पुस्तकें जो ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं,वहां सुरक्षित थीं। ऐसी पुस्तकों में नील-अंगार, संध्या, प्राची,उदिची, कारा-संगीत, टीयर-आफ-अर्थ आदि प्रमुख हैं। इसकी जानकारी ग्राम झिकटिया के वरीय अवकाश प्राप्त अध्यापक श्री राम कृष्ण सिंह जी ने मुझे दी थी। भारतीय कुटीर पुस्तकालय की देख-रेख करने वाले परमानंद मिश्र ने इसे मुझे उपलब्ध कराने का वादा किया है।
वर्तमान में इस ऐतिहासिक,पुरातात्विक,धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण स्थल तथा इसकी महत्ता को जानकर ग्रेट ब्रिटेन से एक लेडी “किट्टी” नामक लेखक (डॉक्टर शत्रुघ्न जी) से मिलने लद्दाख के भंते आनंद जी को साथ लेकर, साथ में अन्य भिक्षुगण के साथ बुद्ध पहाड़ी पहुंची। यहां इसकी भव्यता, प्राचीनता और ऐतिहासिकता को जानकर और समझ कर उसने एक वेशकीमती संगमरमर की आकर्षक प्रतिमा भेंट की तथा गरीबों के बीच 300 कंबल भी बांटी। इससे यहां विकास की किरणें अब दिखाई पड़ने लगी है।
इसे विकसित करने के लिए बोधगया से भंते अशोक शाक्या, भंते शीलभद्र,भंते शीलवंश आदि के साथ बड़ी संख्या में भिक्षुओं का दल विरासत दिवस के मौके पर बुद्ध पहाड़ी आयी और यहां बुद्ध प्रतिमा के समक्ष पूजा-अर्चना कर सूत्र- पाठ करने के उपरांत उपस्थित जनसभा को संबोधित किया। बुद्ध के उपदेशों को लोगों को अपनाने के लिए कहा।
उन्होंने बताया कि तथागत बुद्ध इस क्षेत्र में हमेशा आते रहे हैं,इतना ही नहीं यहां तक कि बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद सर्वप्रथम बुद्ध इसी पहाड़ी पर आए और यहां के बाद वे सहस्राराम होते हुए ‘मृगडाव’ वाराणसी गए थे और “धम्मचक्र परिवर्तन” किया था। यही कारण है कि आज ढाई हजार वर्षों के बाद भी यही एक मात्र स्थल पूरे भारत में “बुद्ध पहाड़ी” के नाम से और पंचवर्गीय भिक्षुओं का स्थल “पचमह(पचमठ)” आजतक अस्तित्व में है।
वर्ष 2021 में इसी क्षेत्र के विधायक सह पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी यहां आए और इसकी ऐतिहासिकता और प्राचीनता को जानकार मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ी निर्माण हेतु ₹600000 देने की घोषणा की समारोह को संबोधित किया। लगातार अब यहां बौद्ध समारोह आयोजित किए जा रहे हैं, जहां हजारों की भीड़ होती है। लोगों के बीच बुद्ध के उपदेश,व्याख्यान तथा मनोरंजन का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर समिति की ओर से हजारों श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का वितरण किया जाता है एवं प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाता है।