मोदी सरकार के विरोध में विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं लेकिन अब तक के उनके सियासी हथकंडे से यही सामने आ रहा है कि इन दलों के पास कोई ठोस एजेंडा नहीं हैं, सिवाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हटाने के। मोदी विरोध के नाम पर इनमें कई दल अपनी राजनीतिक अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके लिए उन्हें राजनैतिक मर्यादाओं और नीतियों को ताक पर रखने से भी परहेज नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा आयेजित रैली से कुछ दिन पहले दो ऐसे दल (सपा-बसपा) आपस में मिले हैं जो कल तक एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करते थे। लेकिन आज उन्हें अपनी राजनीतिक साख बचाने के लिए आपसी समझौते से भी गुरेज नहीं हैं। पानी पी-पीकर कभी एक दूसरे को कोसने वाले आज एक मंच पर गलबहियां करते भी देखे जा रहे हैं। उनकी यह दोस्ती कब तक बनी रहेगी इसपर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन इतना तो स्पष्ट हो गया कि ये सभी मौकापरस्त राजनीति के सूत्रधार हैं।
बहरहाल, अब मुद्दा यह नहीं है कि कौन किस पाले में जा रहा है और कौन किसको छोड़ रहा है। सबसे बड़ा सवाल है कि देश के सामने मोदी का विकल्प कौन हो सकता है। पूरी दुनिया में जहां भी लोकतांत्रिक चुनाव होते है वहां की जनता को यह पता होता है कि चुनावी मैदान में एक दूसरे का प्रतिद्वंद्वी कौन है। जनता उसी के अनुसार किन्हीं एक को अपना मत सौंपती है। लेकिन भारत में जो सियासी परिदृश्य उभरकर सामने आये हैं उसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आम चुनाव में कौन उतरेगा इसपर विपक्षी दलों में एक राय नहीं बन रही है। विपक्षी दलों के नेताओं और प्रवक्ताओं का यही कहना है कि चुनाव परिणाम के बाद हम यह तय कर लेंगे कि कौन प्रधानमंत्री के लिए उपयुक्त होगा। पार्टीगत सूत्र यह भी बताते हैं कि जिस पार्टी की जितनी सीटें आयेंगी उसी के अनुसार पद और मंत्रालय दिया जाना तय होगा। जबकि सबसे अधिक सीट लाने वाली पार्टी प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी ठोकेगी।
राजनीतिक समीक्षक इस तरह की सियासी हथकंडे को सही नही ठहरा रहे है। उनका कहना है कि यह विपक्षी दलों की राजनीतिक अदूदर्शिता है। अगर चुनाव से पहले विपक्षी दलों के बीच नीतिगत समझौते नहीं होते हैं और उनके एजेंडे स्पष्ट नहीं हैं तो इन दलों की वजह से देश में अराजक माहौल बन जायेगा। क्योंकि हर दल अपने अनुसार मंत्रालय चाहेगा। इस लिहाज से यह तय कर पाना मुश्किल हो जायेगा कि ये सभी देश को किधर ले जायेंगे।
पूरा देश जानने को उत्सुक है कि विपक्ष के तरफ से पीएम का उम्मीदवार कौन होगा। लेकिन विपक्ष इसपर ठोस जवाब देने से बचना चाह रहा है। ऐसा लगता है कि विपक्षी एकजुटता के बहाने हर दल का अपना गुप्त एजेंडा है जिसे अभी सार्वजनिक करना नहीं चाहता है। क्योंकि अब तक अन्य विपक्षी दलों से ही पीएम पद के अघोषित चार उम्मीदवार सामने आ चुके हैं, और अपनी इच्छा भी जाहिर कर चुके हैं।
इस आधारहीन मोर्चा के सहारे विपक्ष 2019 का चुनाव जीतना चाहता है। यह सत्य है कि मोदी सरकार की कई योजनाओं और नीतियों को सफल नहीं माना जा सकता है। नोटबंदी, जीएसटी की खामियों को विपक्षी दल मोदी सरकार के खिलाफ चुनावी हथियार बनाने की तैयारी में है। लेकिन विपक्षी दल अपना एजेंडा गुप्त रखना चाहते हैं। विपक्षी दलों के नेता सिर्फ इतना ही कह रहे हैं कि पीएम नरेन्द्र मोदी को केन्द्र की सत्ता से हटाना जरूरी है, क्योंकि देश को एक नये प्रधानमंत्री की जरूरत है। विपक्षी खेमे में शामिल किसी भी दल के पास कोई दूरदर्शी नीति नहीं है जिससे देश की जनता इनपर भरोसा कर सके। बहरहाल, दो दर्जन विपक्षी दलों की जमात देश की जनता को यह विश्वास दिलाने में असमर्थ है कि वह मोदी के खिलाफ बेहतर विकल्प हो सकते हैं।