पाखंडवाद के कारण सनातन धर्म पर चोट पहुंच रही है।
एक ऐसा धर्मगुरू जो अपने आपको साकार नारायण हरि कहता है लेकिन उसकी वेशभूषा सनातन धर्मगुरूओं और संतों के विपरित है। यह वैदिक परम्परा का हिस्सा तो है ही नहीं। शूट-बूट और टाई में प्रवचन देने वाले सूरजपाल जाटव को संत तो कभी नहीं कहा जा सकता।
हाथरस में आयोजित सत्संग में अनियंत्रित भीड़ के कारण 123 लोगो की मौत और करीब 250 गंभीर रूप से घायल लोगों के लिए किसे जिम्मेदार माना जाये। कथित स्वयंभू बाबा साकार नायरण हरि उर्फ सूरजपाल जाटव ने इस घटना की जिम्मेदारी लेने से साफतौर पर इंकार कर दिया है। साकार नायरण हरि का कहना कि उनके जाने के बाद यह घटना घटी है। बाबा ने इसे साजिश करार दिया है, वहीं उत्तर प्रदेश सरकार को भी यह आंशका है कि इस घटना के पीछे किसी की साजिश हो सकती है।
हालांकि कि इस घटना के बाद बाबा के उपर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। इतना ही नहीं गिरफ्तारी के डर से बाबा के नजदीकी लोग फरार हो गये हैं। उनके आश्रम के बाहर पुलिस की तैनाती हो गई है। कई लोगों की गिरफ्तारियां भी हो चुकी है। उत्तर प्रदेश की पुलिस और एसआईटी इस घटना की जांच में जुट गई है। लेकिन दर्ज किये गए एफआईआर में साकार नारायण हरि का नाम नहीं है।
यही कारण पुलिस की जांच पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि कहीं नारायण हरि को बचाने के लिए लीपापोती तो नहीं की जा रही है। क्योंकि नारायण हरि के पास एक बड़ा वोट बैंक हैं और एक बड़ी राजनीतिक पार्टी से उनके संबंध बताये जा रहे हैं। जाहिर है कि हाथरस कांड के बाद नेताओं की ओर से बहुत कम बयान सामने आ रहे है। जबकि हाथरस कांड को जघन्य घटना के रूप में देखी जानी चाहिए।
हाथरस कांड आयोजकों के लिए एक सबक भी है और कई सवालों को जन्म देता है। इस घटना के लिए प्रशासन भी उतना ही जिम्मेदार है जितना की आयोजक। सूत्र के मुताबिक, आयोजन स्थल पर 80 हजार श्रद्धालुओं के बैठने क जगह थी लेकिन ढाई लाख से उपर श्रद्धालु वहां शामिल हुए थे।
एक ऐसा धर्मगुरू जो अपने आपको साकार नारायण हरि कहता है लेकिन उसकी वेशभूषा सनातन धर्मगुरूओं और संतों के विपरित है। यह वैदिक परम्परा का हिस्सा तो है ही नहीं। शूट-बूट और टाई में प्रवचन देने वाले सूरजपाल जाटव को संत तो कभी नहीं कहा जा सकता।
आश्चर्य इस बात की भी है कि ऐसे संतों पर लगाम लगाने की इस देश में कोई व्यवस्था नहीं है। इस देश में ऐसा कोई धार्मिक निकाय नहीं दिखाई दिखता जो इन बाबाओं पर लगाम लगाये। ऐसे लोग खुलेआम सनातनी व्यवस्था का अपमान कर रहे हैं। इस देश में ऐसे कई बाबा घूम रहे हैं जो अपने आपको स्वंयू भू और भगवान के अवतार बता रहे हैं और पता नहीं किन-किन नामों और उपधियों से खुद को ही नवाजा है। ज्यादातर ऐसे ब्रांडेड बाबाओं को धर्म शास्त्रों से दूर-दूर तक नाता नही है।
सियासी रसूख रखने वाले ऐसे बाबाओं के आगे बड़े-बड़े नेताओं को नतमस्तक इसलिए देखा जाता है क्योंकि बाबाओं के पास श्रद्धालुओं का एक बड़ा वोट बैंक होता है। बाबा जिधर संकेत दे दे श्रद्धालुओं के वोट उसी के पाले में चले जाते हैं।
इन्हीं पांखडियों के कारण हिन्दू धर्म बदनामी होती है। इस देश में धर्म का चोला पहनकर कई बाबा धर्म की अच्छी खासी दुकानदारी चला रहे हैं। जिन्हें धर्म का मूल तक पता नहीं है। उनके पास शास्तार्थ का ज्ञान नहीं है। दुर्भाग्य यह है कि ऐसे ढांेगियों के प्रति श्रद्धालुओं की बड़ी आस्था होती है। स्वयं को स्वयंभू कहने वाले ऐसे ढोंगी बाबाओं से हिन्दू धर्म की नींव कमजोर हो रही है।