कांग्रेस के साथ सियासी खिचड़ी पकाने की जुगत में केजरीवाल
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन ने देश को एक नया राजनीतिक विकल्प दिया और उस आंदोलन नेे अरविंद केजरीवाल को देश में एक नायक के रूप में स्थापित किया। भले ही इस आंदोलन के सूत्रधार रहे अन्ना हजारे आज पुनः भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाते दिख रहे हैं। लेकिन अब इस आंदोलन में पहले वाली तेज नहीं है, जनता और मीडिया में अब वो क्रेज नहीं है।
अब मुद्दे पर आते हैं…।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जब भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओ के साथ खड़े दिखते हैं या उनके पक्ष में बयान देते हैं तो हैरानी होती है। उनके बयानों को देखकर, सुनकर अब लोग सोचने लगते हैं कि क्या यह वही अरविंद केजरीवाल हैं जिन्होंने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मोर्चा खोला था और जिनके कदम को जनता ने खूब तारीफ की थी! बहुत जल्द ही वह आंदोलन राजनीतिक दल के रूप तब्दील हो गया और आम आदमी पार्टी का गठन हुआ जिसपर देश की जनता की उम्मीदें बढ़ गई और लोग कहने लगे कि अब कुछ अच्छा होगा।
विशेषकर युवाओं की नजर में अरविंद केजरीवाल यूथ आइकन बन गये। उनके तेवर देखकर बड़े-बड़ों के पसीने छूटने लगे। भ्रष्टाचारियों की पोल खोलने में अरविंद केजरीवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। नेता और नौकरशाह पर आरोप लगाते हुए अरविंद केजरीवाल रॉबर्ट वाड्रा और अंबानी परिवार सहित कई औद्योगिक घराने को भी भ्रष्टाचार के आरोप में कटघड़े में खड़ा कर दिया। यहां तक कि उनपर याचिका भी दायर कर दी।
अरविंद केजरीवाल के इस कदम पर उन्हें भरपूर जनसमर्थन भी मिला। बदलाव की नई विचारधारा के साथ सियासत में कदम रखने वाले अरविंद केजरीवाल की ख्याति देश- दुनिया में बढ़ने लगी और बहुत जल्द दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का गौरव प्राप्त हुआ। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों को ऐसी लोकप्रियता नसीब नहीं हुई जो केजरीवाल को हुई है।
केजरीवाल के काम करने के तरीके से लोग इतने खुश हुए कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव में राज्य की 67 सीटें आम आदमी पार्टी की झोली में दिल्ली की जनता ने डाल दी। इस आंधी में सत्ता के कई मठाधीशों का मठ छिन गया और दिल्ली विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी एक सीट के लिए तरस गई। जबकि बीजेपी को मात्र तीन सीटों से संतोष करना पड़ा था। यह जनादेश स्थापित राजनीतिक दलों के सामने अस्तित्व बचाने का संकट खड़ा कर दिया था। देश मे ऐसे भी नेता है जो कई सालों से सक्रिय राजनीति में है लेकिन उन्हें भी वैसी सफलता नहीं मिली जो केजरीवाल को मिली है।
लेकिन… सियासत का नशा और सत्ता का गुरूर अरविंद केजरीवाल पर भी ऐसा चढ़ा है कि वह सही और गलत में फर्क करना शायद भूल गये हैं या जानबूझकर भूल कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो कल तक जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप उन्होंने खुद लगाये थेे आज उनके साथ खड़े नहीं दिखते। राजनीतिक मंच पर कई बार केजरीवाल ने उन नेताओं के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर विरोधियों को बोलने का मौका दिया है। अपने उसूलों से समझौता नहीं करने की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल आज भ्रष्टाचारियों के साथ एक मंच पर दिखते हैं तो वे बेदाग कब तक रह सकते हैं। जबकि, लोकसभा चुनाव-2019 के लिए कांग्रेस से गठबंधन की अपील कर अरविंद केजरीवाल खुद अपनी सियासी धार कुंद कर रहे हैं।
गत महीने पश्चिम बंगाल में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई में रैली का आयोजन किया गया था जिसमें लगभग दो दर्जन राजनीतिक दलों के अध्यक्ष और प्रतिनिधि शामिल हुए थे। उस मंच पर कई ऐसे नेता मौजूद थे जिनपर अरविंद केजरीवाल खुलेआम भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुके हैं। लेकिन उस मंच पर अरविंद केजरीवाल के शामिल होने से कई सवाल खड़े होने लगे। इससे पहले भी केजरीवाल को उन नेताओं के साथ राजनीतिक मंच पर देखा जा चुका है।
सवाल यह है कि क्या सियासत की लंबी पारी के लिए अरविंद केजरीवाल को उन नेताओं के साथ हाथ मिलाना जरूरी है जिनके दामन पर भ्रष्टाचार के दाग लग चुके हैं। क्योंकि अरविंद केजरीवाल तो राजनीति मेें कुछ अलग करने आये थे। लेकिन अब तो केजरीवाल भी भ्रष्टाचार में शामिल दलों के साथ सियासी खिचड़ी पकाने की जुगत में हैं।
हाल ही में दिल्ली में आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन को लेकर एनसीपी नेता शरद पवार के घर पर मीटिंग हुई थी। जिसमें सूत्र बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख अब्दुल्ला मौजूद थे। यह मीटिंग आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन को लेकर की गई थी, लेकिन बात नहीं बनी। इसपर अरविंद केजरीवाल का तर्क है कि लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करना जरूरी है क्योंकि उन्हें देश की चिंता है।
जबकि, दिल्ली में एक सभा को संबोधित करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि हम कांग्रेस से गठबंधन करने के लिए कह-कहकर थक चुके हैं। लेकिन कांग्रेस इसपर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दे रही है। सूत्र बताते हैं कि दिल्ली में कांग्रेस आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नही करना चाहती है। इससे पहले भी आम आदमी पार्टी के कई शीर्ष नेता कांग्रेस के साथ गठबंधन की वकालत कर चुके हैं और अब भी पुरजोर कोशिश में हैं।
अब सवाल उठ रहे हैं भारतीय राजनीति में एक अलग लकीर खीचने वाली आम आदमी पार्टी अब घिसी-पिटी राजनीति करने पर क्यों मजबूर है। अरविंद केजरीवाल से तो यह उम्मीद नहीं थी कि उन्हें वैसी पार्टी के आगे गठबंधन के लिए गिड़गिड़ाना पड़े जिस पार्टी का दिल्ली में एक भी विधायक न हों और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक वजूद बचाने के लिए दूसरे दलों पर आश्रित हों।
शायद, आम आदमी पार्टी के नेताओं को इस बात का अहसास हो रहा है पार्टीगत और कई शासनिक-प्रशासनिक विवादों की वजह से पार्टी की लोकप्रियता में कमी आई है। कभी प्रधानमंत्री की रेस में शामिल रहने वाले अरविंद केजरीवाल आज लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी से सहयोग मांग रहे हैं, जिसके नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्होंने कांग्रेस को कहीं का न छोड़ा। शायद यही वजह है कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने से परहेज कर रही है। क्योंकि कांग्रेस के पास अब खोने के लिए कुछ भी नहीं है।
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