Thursday, May 22, 2025
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कोरोना के बाद देश में भूखमरी और बेरोजगारी से लड़ने की चुनौती

कोरोना महामारी से सरकार आज न कल निबट लेगी, लेकिन इसके बाद की चुनौतियां भयावह हैं। इस महामारी से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। लॉकडाउन के कारण उपजी परिस्थितियों ने गरीब तबके की कमर तोड़ दी है और मध्यम वर्ग अनिश्चितताओं को लेकर भयभीत है।

प्रतिस्पर्धा के इस दौर मे छोटे स्तर के कारोबारी, मैन्यूफैक्चरर्स बाजार में लम्बे समय तक नहीं टिक पायेंगे। क्योंकि ये सभी पहले नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी की मार से बमुश्किल उबर पाने में सक्षम हो पाये थे, अब कोरोना के कारण उत्पन्न वित्तीय चुनौतियों ने उन्हें पुनः हाशिये पर धकेल दिया है। कई कारोबारियों ने अपना कारोबार समेटने का मन बना लिया है और अपने कर्मचारियों को घर लौट जाने को कह दिया है।

नतीजा, गरीब तबकों के सामने आजीविका का संकट खड़ा होगा। जबकि, मकान, गाड़ी, बच्चों की शिक्षा और कई भौतिक सुविधाओं को पूरा करने के कारण किस्तों में आधी जिंदगी गुजार देने वाला मध्यम वर्ग आज दोराहे पर खड़ा है। कोरोना बीमारी के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने कई नीतियां बनायी है लेकिन मध्यम वर्ग को उन नीतियों और योजनाओं से लाभ मिलने की संभावना कम है। गरीब तबका पूरी जिंदगी सिर्फ कमाने और खाने से वास्ता रखता है। जबकि, सपनों को पूरा करने की चाह में मध्यम वर्ग क्षमता से अधिक चादर फैला लेता है। किसी भी कारण से उत्त्पन्न हुई वित्तीय परिस्थितियों से सबसे ज्यादा प्रभावित मध्यम वर्ग ही होता है।

कोरोना के कारण देश में लॉकडाउन है। सूत्र बता रहें हैं कि हालात को देखते हुए सरकार लॉकडाउन की सीमा और बढ़ा सकती है। वर्तमान परिस्थितियां लोगोें में सिहरन पैदा कर रही है। रोजमर्रा की जिंदगी जीने वाले और मजदूरी कर जीवन यापन करने वाले लोगों के सामने भूखमरी का संकट है। सरकार की योजनाओं का लाभ जरूरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। इस विकट दौर में भी बिचौलिये मजे लूट रहे हैं।

कामगारों के लिए आने वाला दौर कितना भयावह होगा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, कई संस्थानों, कंपनियों और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को अपने अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद करना होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना से उत्पन्न वित्तीय आपात के कारण देश में लगभग 40 करोड़ लोग बेरोजगार हो सकते हैं। रोजगार का संकट देश के विकास की रफ्तार पर भी ब्रेक लगा देगा।

आरबीआई और कई वित्तीय संस्थायें केन्द्र सरकार को आर्थिक चुनौतियों पर आगाह कर चुके हैं। फिलहाल सरकार का पूरा ध्यान कोरोना से निपटने में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता को लॉकडाउन पालन की अपील करते हुए कहा है जान है तो जहान है। सरकार का मानना है कि कोरोना से लड़ने के बाद हम आर्थिक चुनौतियों से भी निबट लेंगे।

राजस्व उत्पन्न करने वाले सभी सरकारी एवं पीएसयू सेक्टर बंद हो जाने के कारण सरकार को प्रतिदिन बडा घाटा सहन करना पड़ रहा है। इसके आलावा वो सारे सेक्टर बंद हो चुके हैं जिसपर देश की बड़ी आबादी आर्थिक तौर पर निर्भर थी। असंगठित क्षेत्रों से जुड़े रोजगार और उससे जुड़े लोगों की गिनती करना भी आसान नहीं है। लॉकडाउन हटने के बाद भी उन सेक्टरों को तुरंत चालू होने की संभावना नहीं है।

देश की 70 फीसदी आबादी के जीवनयापन के खर्चे बहुत कम है तो उनके सामने रोजमर्रा के विकल्प भी बहुत सीमित हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल इस्टेट सेक्टर, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करने वाले लोग अब घर लौटना चाहते हैं। कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन ने उन्हें शहरों की चमक-दमक से मोहभंग कर दिया है।

दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात आदि शहरो में फंसे करीब दस लाख मजदूर अपने घर लौटना चाहते हैं। दिल्ली के आनंद विहार, महाराष्ट्र के बांद्रा और गुजरात के सूरत सहित कई जगहों पर प्रवासी मजदूर घर लौटने के लिए बड़ी संख्या में एकत्रित भी हुए, लेकिन लॉकडाउन की वजह से वह घर नहीं आ सके। कई लोग हजारों किलोमीटर पैदल सफर तय करके अपने गांव अथवा गृहनगर पहुंचे हैं।

सूत्र बताते हैं कि लॉकडाउन की वजह से महानगरों में फंसे मजदूरों अथवा रोजमर्रा की जिंदगी जीने वाले लोग हालात सामान्य होते ही अपने घर लौट जाना चाहते हैं। वे सभी इस बात को भलीभांति समझ रहे हैं कि घर लौटने के बाद उनके सामने बड़ी आर्थिक चुनौतियां सामने आयेंगी। फिर भी वह इस विकट परिस्थिति में अपने परिवारों के बीच रहना चाहते हैं।

कुछ राज्यों को छोड़ दें तो देश की अधिकांश राज्य की सरकारें अपने नागरिकों, विशेषकर मजदूर तबके को भी रोजगार प्रदान कर पाने में सक्षम नहीं है। हालांकि कई राज्य सरकारों की कोशिश है कि, मनरेगा सहित रोजगार सृजन की जाने वाली अन्य योजनाओं को चालू किया जाये, जिससे बाहर से अपने घर लौटने वाले उन मजदूरों को तत्काल रोजगार मुहैया करायी जा सके।

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