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सनातनम उन्मूलन सम्मेलनः राष्ट्र की एकता और अखंडता के विरूद्ध बड़ा षडयंत्र

सनातन के खिलाफ बयानबाजी करने का एक चलन बन गया है। जिन नेताओं को कोई अपने क्षेत्र में भी नहीं जानता वह सनातन धर्म के खिलाफ बयानबाजी कर विरोधी गूट का चहेता बन जाते हैं। उन्हें खूब मीडिया कवरेज मिलने लगती है। बयानबाजी में कुछ लोग मर्यादा की सीमाओं को भी लांघ देते हैं। ऐसे बयान सियासी नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर दिये जाते हैं।

लेकिन, बड़ा सवाल है कि ऐसे नेताओं को सबक कब मिलेगी ?

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और राज्य के युवा कल्याण और खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने विवादित और निंदनीय बयान दिया है। उदयनिधि ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया से की है। यह बयान किस प्रसंग में दिया गया है यह भी जानना जरूरी है।

दरअसल, तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन ने चेन्नई में एक सम्मेलन का आयोजन किया था। इस सम्मेलन का नाम था सनातनम उन्मूलन सम्मेलन। सनातन धर्म का उन्मूलन कैसे हो इसपर बौद्धिक स्तर के लोग विचार विमर्श कर रहे थे। यह इस राष्ट्र के लिए बहुत ही गंभीर मामला है और इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

इसी सम्मलेन में उदयनिधि स्टालिन ने अपने संबोधन में कहा है कि सनातन का विरोध करने के बजाये इसे खत्म किया जाना चाहिए। क्योंकि डेंगू, मलेरिया का विरोध नहीं करते हैं बल्कि उसका सफाया करते हैं। उदयनिधि ने यह भी कहा है कि सनातन नाम संस्कृत से है और यह भाषा सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है।

अगर इस बयान को गंभीरता से लिया जाये तो सनातन धर्म को मानने वालों को खुलेआम धमकी है। इस बयान को लोगों तक पहुचाने से पहले इसकी पूरी रोडमैप तैयार की गई। जब सम्मेलन का आयोजन ही सनातन धर्म के खिलाफ है तब किस तरह के बयान की उम्मीद की जा सकती हैं। इस तरह के राष्ट्रविरोधी सम्मेलन के आयोजन की स्वीकृति शासन-प्रशासन ने कैसे दी, यह भी जांच का विषय है।

जब यह सम्मेलन प्रोगेसिव राइटर्स एसोसिएशन के बैनर तले हुआ है तो इसमें दोमत नहीं है कि इस सम्मेलन में उच्च बौद्धिक स्तर के लोग शामिल हुए हैं। इस चुनावी दौर में प्रोगेसिव राइटर्स एसोसिएशन द्वारा सनातनम उन्मूलन सम्मेलन कराने की क्या जरूरत थी। इस आयोजन का उद्वेश्य पहले से ही जाहिर हो रहे हैं तब सवाल उठता है कि इस आयोजन को रोका क्यों नहीं गया।

जबकि तमिलनाडु प्रोगेसिव राइटर्स एसोसिएशन किसी चुनावी दल का विंग नहीं है। यह स्वतंत्र निकाय है तो फिर किसी धर्म के खिलाफ आयोजन का अधिकार इसे कौन दिया। इसकी जांच होनी चाहिए। कोई दल या व्यक्ति सरकार में शामिल है तो उसे इतना अधिकार नहीं है कि वह राष्ट्र के विरोध में आयोजन कर सके। यह आयोजन पूरी तरह राष्ट्रविरोधी है। राष्ट्र की सुरक्षा एजेंसियों को भी इसका संज्ञान लेना चाहिए कि इस आयेाजन के पीछ कौन है। किसकी शह पर इस तरह के आयोजन किये गये।

उदयनिधि स्टालिन किस धर्म को मानते है यह उनका निजी मसला है लेकिन खुलेमंच पर सनातन धर्म को कमतर आंकने और अनर्गल बयान देने का उन्हें कोई अधिकार नहीं हैं। विवाद बढ़ने के बावजूद उदयनिधि अपने बयान पर अडिग हैं।

दूसरी ओर एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा है। इस गठबंधन में कई ऐसे दल और नेता शामिल हैं जिनपर मुस्लिम तुष्टीकरण, राष्ट्रविरोधी गतिविधियां, जातीय-नस्लीय भेदभाव और सनातन विरोध का ठप्पा लग चुका है।

सनातन के खिलाफ बयानबाजी करने का एक चलन बन गया है। जिन नेताओं को कोई अपने क्षेत्र में भी नहीं जानता वह सनातन धर्म के खिलाफ बयानबाजी कर विरोधी गूट का चहेता बन जाते हैं। उन्हें खूब मीडिया कवरेज मिलने लगती है। बयानबाजी में कुछ लोग मर्यादा की सीमाओं को भी लांघ देते हैं। ऐसे बयान सियासी नफा नुकसान को ध्यान में रखकर दिये जाते हैं।

इस देश में सनातन धर्म हमेशा ही छद्म सेक्युलर नेताओ के निशाने पर रहा है। चुनाव आते ही ऐसे नेता अपने एजेंडे को पूरा करने में लग जाते हैं। इस तरह के बयान से ऐसे नेताओं की मानसिक दिवालियेपन का पता चलता है और जितना उन्हे फायदा नहीं होता उससे कहीं ज्यादा लौंगटर्म नुकसान का सामना करना पड़ता है।

उदयनिधि इससे पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं। उन्होंने सुषमा स्वराज और अरूण जेटली की मौत का जिम्मेदार प्रधानमंत्री मोदी को ठहराया था। तब उनके बयान की काफी भर्त्सना की गई थी। हिन्दी भाषा-भाषियों के खिलाफ वह कई बार अमर्यादित बयान दे चुके हैं।

उदयनिधि स्टालिन को राजनीतिक पहचान विरासत में मिली है। एम. करूणानिधि के पोते और एमके स्टालिन के बेटे के रूप में ही उदयनिधि को अब भी जाना जाता है। उन्हें एक नेता के रूप में पहचान नहीं मिली है। उदयनिधि को बैकडोर से राजनीति में एंट्री करायी गई है और राज्यमंत्री बनाया गया। दक्षिण भारत की कई फिल्मों में उदयनिधि अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। जब उन्हें फिल्मों में सफलता नहीं मिली तब पिता एमके स्टालिन ने राजनीति में लाना उचित समझा।

इस देश में कई पार्टी के नेताओं ने अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अपने बेटे-और बेटियों को पहली प्राथमिकता दी है भले ही वह उसके काबिल हो या नहीं। उदयनिधि उन्हीं में से एक है। उन्हें राजनीति की कोई समझ नहीं है। विवादित बयानों के कारण उनकी देशभर में किरकिरी हुई है और पार्टी नेतृत्व को जवाब देना पड़ा है।

इस चुनावी दौर में सनातन धर्म के खिलाफ उनका ये बड़बोलेपन कहीं भारी ना पड़ जाये। सनातन के खिलाफ बयानबाजी के कारण दिल्ली मे उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। एफआईआर दर्ज होने के बाद उदयनिधि ने कहा है कि वह कानूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं लेकिन माफी नहीं मांगेंगे।

एनडीए के खिलाफ एकजूट हो रहे नेताओं ने भी उदयनिधि के बयान की निंदा की है। क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं हिन्दू वोट बिखर नां जाये। इसलिए इंडिया गठबंधन ने उदयनिधि के बयान से किनारा कर लिया।

लेकिन, बड़ा सवाल है कि ऐसे नेताओं को सबक कब मिलेगी ? भारत सरकार को इसके खिलाफ सख्त कानून बनाने की जरूरत है। ताकि कोई भी व्यक्ति किसी धर्म से जुड़ी आस्था, परम्परा और मान्यताओं के खिलाफ अमर्यादित बयान देने बचे। ऐसे लोग अगर राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं तो सरकार, चुनाव आयोग, न्यापालिका स्वतः संज्ञान लेते हुए तमाम साक्ष्यों के आधार पर उन्हें वोट देने और चुनाव लड़ने पर रोक लगा दे।

अगर ऐसा होता है कि साम्प्रदायिक बीमारी जड़ से खत्म हो जायेगी। क्योंकि इस देश में साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने में ज्यादातर नेता ही जिम्मेदार पाये जाते हैं।
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