युवा वोटरों से बदलेगा बिहार का सियासी समीकरण !
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बिहार में 54 फीसदी युवा वोटर्स हैं जिनकी उम्र 18 से 35 वर्ष है।
जब बिहार में 28 अक्टूबर को 16 जिलों में 71 सीटों पर पहले चरण का चुनाव सम्पन्न हुआ था तब प्र्रमुख सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक और शोधकर्मी डॉ. शत्रुघ्न डांगी ने मुझे स्पष्ट तौर पर कहा था कि पहले चरण की 40 फीसदी सीटों पर महागठबंधन की जीत तय मान लीजिए। उन्होंने यहां तक कहा था महागठबंधन के कुछ उम्मीदवार डिस्टिंक्शन से जीत दर्ज करेंगे। पहले चरण में 58 फीसदी मतदान हुए थे।
03 नवम्बर को दूसरे चरण में 17 जिलों में 94 सीटों पर चुनाव हुए थे। दूसरे चरण में 54 फीसदी मतदान हुए।
07 नवम्बर के तीसरे और अंतिम चरण के लिए 15 जिलों में 78 सीटों पर मतदान हो चुके हैं। आखिरी दौर में 55 प्रतिशत मतदान हुए हैं। तीनों चरण के चुनाव में बिहार के मतदाताओं के रूझान महागठबंधन की तरफ ज्यादा दिखे।
243 विधानसभा सीटों के लिए मतदान का प्रतिशत हर चरण में घटता ही गया। मतदान का दर घटता जाना लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है, लेकिन कोराना काल में इतना भी मतदान हो जाना छोटी बात नहीं है। चुनावी समर में उतरे समी प्रत्याशियों की तकदीर ईवीएम में कैद हो गई है और 10 नवम्बर को यह तय हो जायेगा कि राज तिलक किसका होगा।
जुलाई-अगस्त के महीने में जब कोरोना का दौर बिहार में पीक प्वाइंट पर था, उसी दौरान बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की बढ़ती सक्रियता पर बिहार के लोगों ने कहा था कि कोरोना के डर से मतदान करने कौन जायेगा। यह भी सच है कि प्रौढ़ एवं वृद्ध वोटरों की अपेक्षा बिहार के युवा वोटरों ने मतदान में ज्यादा उत्सुक्तता दिखाई है। ग्रांउंड रिपोर्ट के आधार पर, शहरी बूथों की अपेक्षा ग्रामीण बूथों पर बंपर वोटिंग हुई है।
न्यूज रिव्यू इंडिया के आकलन के मुताबिक,
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243 विधानसभा सीटों में से 74 फीसदी सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर है और इसके परिणाम ही बिहार में नई सरकार के लिए निर्णायक साबित होंगे। इसके अलावा छोटे-छोटे दल जो जाति, धर्म, कॉम और पंथ की धूरी पर केन्द्रीत होकर चुनाव मैदान में उतरे थे उन्हें आंशिक लाभ भी मिलता नजर नहीं आ रहा है। अब उसी बात को बड़़े-बड़े सियासी पंडित कह रहे हैं और पोलिंग/सर्वे एजेंसियां भी मानकर चल रही है कि बिहार में ओवैसी का मुस्लिम-दलित कार्ड चुनाव पर कोई खास असर नहीं डाल पायेगा।
क्योंकि इस बार बिहार की चुनावी रैलियों में जातिगत एवं धार्मिक मुद्दे हाशिये पर दिखे। हालांकि जाति और सम्प्रदाय के बिना बिहार में चुनाव ही संभव नहीं है। लेकिन इस बार महागठबंधन के चुनाव प्रबंधकों ने जातिगत मुद्दे को गौण रखकर स्थानीय समस्याओं और बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बना दिया। यह चुनाव प्रबंधन का कमाल है कि बिहार के युवाओं का तेजस्वी यादव के प्रति रूझान बढ़ता गया। बिहार में 54 फीसदी युवा वोटर्स हैं जिनकी उम्र 18 से 35 वर्ष है और उन युवाओं ने जमकर वोटिंग महागठबंधन के पक्ष में कर दी है। बिहार में सीएम नीतीश कुमार का विरोध और तेजस्वी के प्रति युवा वोटरों के झुकाव से बिहार का सियासी समीकरण बदलता दिख रहा है।
आखिरी वक्त में एनडीए घटक का साथी लोजपा ने बिहार में अलग चुनाव लड़ने का फैसला कर एनडीए का पूरा सियासी समीकरण ही बिगाड़ दिया। लोजपा नेता चिराग पासवान की भी इस चुनाव में अग्नि परीक्षा हो जायेगी की मोदी की लहर पर सवार होकर दो बार सांसद बनने वाले अपनी पार्टी को कितनी सीटें दिला पाते हैं। वोटर्स के रूझान और एक्जिट पोल ने चिराग पासवान के चेहरे पर मायूसी ला दी है।
ग्रांउंड रिपोर्ट यह है कि चिराग पासवान की पार्टी लोजपा दहाई का आंकड़ा नहीं कर पायेगी। मसलन एक से सात सीटों के अंदर ही लोजपा की जीत का आंकलन किया जा रहा है। इस चुनाव परिणाम में सबसे ज्यादा घाटा एनडीए घटक को होगा। वोटर्स के रूझान यह बता रहे हैं कि जदयू 62 सीटों तक जीत दर्ज कर सकती हैं जबकि बीजेपी 55 सीटों के अंदर ही रह जायेगी।
जबकि आरजेडी 80-100 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है। महागठबंधन के पक्ष में जिस तरह बिहार में बंपर वोटिंग हुई है उससे आरजेडी की जीती हुई सीटों की संख्या में और इजाफा हो की संभावना जतायी जा रही है। वहीं कांग्रेस को तेजस्वी की लहर का फायदा मिलेगा और 25-32 सीटों के बीच जीत दर्ज करने में सफल हो सकती है। इस लिहाज से बिहार में सरकार के बदलने की संभावना ज्यादा दिख रही है।
एनडीए और महागठबंधन को छोड़कर जितना भी मोर्चा बना है उसे इस इस बार कुछ ज्यादा हासिल नहीं होने वाला है। वोटर्स के रूझान बता रहे हैं कि अन्य मोर्चों एवं घटकों के उम्मीदवार अपनी जमानत बचा लें यह उनके लिए बड़ी बात होगी। लगभग एक दर्जन सीटें अन्य के हिस्से में जायेगी जिनमें निर्दलीय उम्मीदवार भी होंगे।