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बॉलीवुड में दांव पर 3000 करोेड़ रूपये, निर्माता-निर्देशकों में बढ़ी बेचैनी

आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा का फ्लॉप होना बॉलीवुड के उन लोगों के गुरूर टूटने जैसा है जो खुद को सिस्टम से उपर मानकर चल रहे थे। इस फिल्म के फ्लॉप होते ही निर्माता-निर्देशकों और स्थापित अभिनेता-अभिनेत्रियों में गजब की बेचैनी दिख रही है। 

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दर्शकों का यह विरोध बॉलीवुड के उन लोगों के लिए स्पष्ट नसीहत है कि अभिव्यक्ति के नाम पर मनमानी करोगे तो इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। एक कलाकार को दर्शक ही स्टार बनाता है, लेकिन जब फिल्म को दर्शक ही नहीं मिलेंगे तो उनकी स्टारडम कब तक बची रहेगी। आज रेटिंग पर बाजार का भाव निर्भर करता है। कलाकार का भी एक बाजार मूल्य निश्चित है। जैसी जिसकी रेटिंग, विज्ञापन जगत में वैसी उसकी कीमत आंकी जाती है। 

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2023 तक कई बड़ी बजट की फिल्म पर्दे पर रिलीज होनी है और लगभग 3000 करोेड़ रूपये दांव पर लगे हैं। इसमें कई ऐसे अभिनेता की फिल्म आने वाली है जो बॉक्स ऑफिस पर भरपूर कलेक्शन की गारंटी माने जाते हैं। मगर, लाल सिंह चड्ढा के फ्लॉप होते ही उन सभी की सांसे फूल रही हैं। सलमान खान, शाहरूख खान, रितिक रोशन, रणबीर कपूर जैसे अभिनेताओं की फिल्म थियेटर में लगने की तारीखों का ऐलान किया जा चुका है। ऐसे में अगर निर्माता उन फिल्मों की रिलीज डेट आगे बढ़ाते हैं तो यह उनकी बदनामी मानी जायेगी और फिल्म पर इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है।

लेकिन, इतना तय मान लीजिए अगले कुछ दिनों और महीनों में रिलीज होेने वाली फिल्में बायकॉट ट्रेंड की बलि चढ़ जायेगी। जब आमिर खान और अक्षय कुमार जैसे अभिनेता बायकॉट ट्रेंड को नहीं झेल पाये तो यकीन मानिए कि पीआर के भरोसे चलने वाली फिल्मों का और बुरा हश्र हो सकता है।

यह फिल्मकारों के लिए आत्ममंथन का विषय है कि भारत में ऐसा दौर क्यों आया? कल तक दर्शकों ने जिसे सिर आंखों पर बैठाया आज वह उन्हीं से क्यों नफरत करने लगे हैं, उनकी फिल्मों का विरोध क्यों कर रहे हैैंं ? इन सारे सवालों के जवाब बॉलीवुड को ही ढूंढने होंगे। दर्शक तो अभी फिल्म को देखने से ज्यादा उसे फ्लॉप करवाकर आनंदित हो रहे हैं।

सनातन धर्म को मानने वालों में बॉलीवुड के प्रति भरपूर गुस्सा है। उनका मानना है कि हिन्दू धर्म को जानबुझकर टार्गेट किया जा रहा है। दर्शकों ने अब उन सभी को सबक सिखाने को ठान लिया है जो इनके पैरोकारी हैं। लिहाजा बॉलीवुड मे वाकई में डर का माहौल बना हुआ हैै। भले ही इसे कोई जाहिर न कर पा रहा हो।

सनातन धर्म के मानने वालों का कहना है कि फिल्म के माध्यम से अगर धर्म और समाज की बुराइयों को ही सामने लाना है तो अन्य धर्मो मे भी बुराइयां और कुरीतियां मिल जायेगी। हर धर्म, पंथ और समाज में भी मान्यताओं और परम्पराओं के नाम पर कई कुरीतियां आज भी प्रचलित है। तो फिर फिल्मों के माध्यम से हिन्दू धर्म और समाज का ही गलत चित्रण क्यों ?

बॉलीवुड में कुछ लोग आस्था पर चोट पहुंचाना फिल्म की पब्लिसिटी स्टंट मानकर चलते हैं। बॉलीवुड के कुछ कलाकारों ने एक ऐसी पृष्ठभूमि तैयार कर दी है जो उनकी फिल्म को हिट कराने के लिए संजीवनी का काम करती हैं। सिर्फ इतना ही करना है कि सनातन व्यवस्था पर चोट पहुचाओं और एक बड़ा दर्शक वर्ग को अपनी ओर आकर्षित कर लों। विरोध जितना होगा, फिल्म उतनी ही हिट मानी जायेगी। कला और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर दूसरे की भावनाओं को भड़काओ, दूसरे धर्म की आस्था से खिलवाड़ करो तो फिल्म का विरोध अपने आप शुरू हो जायेगा। इसी परिपार्टी पर चलकर कई निर्माता, निर्दशकों और प्रोडयूसर बने अभिनेताओं ने अपनी फिल्म हिट करायी है और बॉक्स ऑफिस पर मोटा कलेक्शन किया है। लेकिन यही फार्मूला अब उनपर ही भारी पड़ता दिख रहा है।

यह सनातन व्यवस्था के मानने वालो के धैर्य का परिणाम है कि बिना आंदोलन, बिना तोड़फोड़ किये अपनी बात वहां तक पहुंचा दी, जिनकी बोली और चाल में गजब की ऐंठ दिखती है। विवादित फिल्मों का विरोध पहले भी होता रहा है, लेकिन इस बार ऑर्गनाइज्ड तरीके से आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा का विरोध किया गया।  उसके बाद दर्शकों ने हर उस कलाकार को अपने भीतर झांकने को मजबूर कर दिया है जो खुद को बॉलीवुड का भगवान मान बैठे थे। जो खुद को यह मानकर चल रहे थे कि बॉलीवुड उनपर ही टिका है, लेकिन सनातनियों के विरोध के कारण आज उनका ही स्टारडम खतरे में दिख रहा है।

बॉलीवुड में किसी की आस्था पर चोट पहुंचाने की मानसिकता को अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ दिया गया और पिछले कुछ सालों में यह चलन बढ़ा है। आजादी के बाद सनातन संस्कृति का सबसे ज्यादा नुकसान बॉलीवुड की फिल्मों के माध्यम से किया गया है। हैरानी इस बात की है कि गलत को भी सही ठहराने की दलीलें पेश की जाने लगी और इसके लिए बॉलीवुड ने एक बड़ी लॉबी बनायी। जिसमें हिन्दू विचारधारा के विरोधी अभिनेता, अभिनेत्री, निर्माता, निर्देशक एवं कथित सेक्युलर नेताओं के साथ-साथ मीडिया जगत से जुड़े एलीट क्लास के कुछ नामी चेहरे भी इसमें शामिल हैं। कुछ लोग तो फिल्म के विरोध को डायवर्ट करने के लिए पेे रोल पर काम कर रहे हैं।

थियेटर में लगने से पहले ही चौतरफा विरोध झेलने वाली आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्डा के प्रति सकारात्मक माहौल बनाने के लिए मीडिया जगत के कुछ नामी चेहरे सक्रिय भी हुए। हालांकि उन्हें असफलता हाथ लगी। सनातन विरोधी कंटेट को लेकर इससे पहले भी कई फिल्म निर्माता को नुकसान का सामना करना पड़ा है। वह फिल्म बॉक्स आफिस पर अच्छा कलेक्शन कर पाने में असफल रही है। लेकिन इस बार जो आमिर खान के साथ हुआ वह वाकई में डिजास्टर है। आमिर खान के कुछ पुराने बयानों और पीके फिल्म में भगवान शंकर को बाथरूम में बंद करने के एक सीन के कारण उन्हें बॉयकॉट का सामना करना पड रहा है।

लगभग चार साल बाद थियेटर में लगी आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्डा बॉक्स ऑफिस पर एक हफ्ते में भी 50 करोड़ करोड़ नहीं कमा सकी है। जबकि फिल्म की लागत 180 करोड़ बतायी जा रही है। वितरकों ने अपने नुकसान की भरपाई के लिए निर्माता से हर्जाना मांगा है। डिस्ट्रीब्यूटरों ने इस फिल्म के फ्लॉप होने के लिए आमिर खान को जिम्मेदार ठहराया है।

दर्शकों का यह विरोध बॉलीवुड के उन लोगों के लिए स्पष्ट नसीहत है कि अभिव्यक्ति के नाम पर मनमानी करोगे तो इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। एक कलाकार को दर्शक ही स्टार बनाता है, लेकिन जब फिल्म को दर्शक ही नहीं मिलेंगे तो उनकी स्टारडम कब तक बची रहेगी। आज रेटिंग पर बाजार का भाव निर्भर करता है। कलाकार का भी एक बाजार मूल्य निश्चित है। जैसी जिसकी रेटिंग, विज्ञापन जगत में वैसी उसकी कीमत आंकी जाती है। बॉलीवुड को पहली बार डर अहसास हुआ है कि दर्शकों के विरोध के कारण उनकी फिल्म डूब सकती है। कुछ समय पहले तक फिल्म को हिट कराने के लिए कंट्रोवर्सी क्रिएट की जाती थी। अब तो फिल्म निर्माता कंट्रोवर्सी के नाम से ही डरने लगे हैं।

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