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नेशनल हाइवे पर तीस किलोमीटर तक फायरिंग, सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में कहा था यहां जनता का राज कायम है। यहां अपराध और अपराधियों की कोई जगह नहीं है। लेकिन उनके दिये इस  बयान के कुछ ही दिन बाद बेगुसराय में नेशनल हाइवे पर बाइक सवार ने तीस किलोमीटर तक लगातार फायरिंग का बिहार की सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है।

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बिहार में बेगुसराय जिले के अंतर्गत आने वाला दो नेशनल हाइवे (एनएच-28 और एनएच-31) पर दो बाइक सवारों द्वारा लगभग तीस किलोमीटर तक फायरिंग की जारी रही। इस दायरे में 5 थाने लगते हैं, लेकिन किसी थाने के पुलिसकर्मी की नजर उस बाइकर पर नहीं पड़ी। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहार की सुरक्षा व्यवस्था कितनी चाक चौबंद है। कहा जा रहा है कि बाइक सवारों द्वारा लगभग 24 राउंड फायरिंग की गई है। इस दौरान 11 लोगों को गोली लगी है। यह बिहार में ही संभव है कि इतना बड़ा कारनामा हो जाये और पुलिस प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगी। अगर पुलिसकर्मी अपने थाने के दायरे में पेट्रोलिंग कर रहे होते तो अपराधी भाग नहीं पाते।

यह संकेत देता है कि बिहार में अपराधियों में पुलिस प्रशासन का डर खत्म होता दिख रहा है। पुलिस महकमा इसपर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। इस घटना के बाद बिहार में उच्च स्तर के प्रशासनिक अधिकारियों पर राज्य सरकार की भौहें तनी हुई हैं। क्यांकि इस कांड के बाद बिहार सरकार की काफी किरकिरी हो रही है। लॉ एंड ऑर्डर पर सवाल खड़े हो रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी माना कि यह सामान्य घटना नहीं है। जांच शुरू कर दी गई है और अब तक सात पुलिसकर्मी सस्पेंड कर दिये गये हैं। इस घटना के बाद बेगुसराय तो क्या राज्य के कई जिलों की पुलिस सतर्क हो गई है। अब पुलिस-प्रशासन की सक्रियता जैसी भी रहे, लेकिन इस घटना से प्रशासनिक विफलता की पोल तो खुल गई।

बेगुसराय के मामले पर केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि लालू-राबड़़ी के शासनकाल में सत्ता के संरक्षण में आपरधिक वारदातें होती थी। बिहार में वही दौर फिर से दिखने लगा है। बिहार में जैसे ही सत्ता से बीजेपी बाहर हुई है अपराधियों का मनोबल बढ़ गया है। उन्होंने यह भी कहा है कि, आनन-फानन में जिन लोगों को बेगुसराय मामले मेे गिरफ्तार किया गया है उस मामले में पुलिस कुछ छिपाने में जुटी है।

गिरिराज सिंह कहते हैं कि इसे आतंकी घटना से जोड़कर देखा जाना चाहिए और इसकी जांच एनआईए से कराने की जरूरत है। क्योंकि बिहार की पुलिस असली मुजरिम की जगह निर्दोष को बलि का बकरा बना सकती है और मुख्य आरोपी हमेशा पुलिस की पकड़ रह सकता है। गिरिराज सिंह ने बिहार पुलिस पर यह भी आरोप लगाया है कि बिहार की पुलिस आरोपी का असली नाम छिपा रही है।

पुलिस सुत्रों का भी मानना है कि इलाके में दहशत कायम करने के लिए आपराधियों ने इस घटना को अंजाम दिया है। इस संदर्भ में आगे की कार्रवाई जारी है। ऐसे वारदात को अंजाम देकर अपराधियों ने बिहार में सुशासन पर सवालिया निशान लगा दिया है।

हाल ही में बिहार में बड़ी सियासी घटना घटी है। जबकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही हैं। जदयू ने बीजेपी से गठबंधन तोड़कर आरजेडी (महागठबंधन) के साथ सरकार बना ली है। पहले बिहार में बीजेपी-जदयू और वीआईपी (एनडीए) की साझा सरकार चल रही थी। अब बिहार में जदयू-आरजेडी-कांग्रेस एवं अन्य को मिलाकर नीतीश कुमार सरकार चला रहे हैं।

बिहार में न शासन बदला और ना ही प्रशासन। सिर्फ सत्ता के साझीदार बदले हैं। सब कुछ पूर्व की भांति ही चल रहा है। बस कुछ नये दल और नये चेहरे सत्ता में शामिल हो गये। लेकिन नये दल और नये चहरोें के शामिल होते ही बिहार में बहुत कुछ बदलते दिख रहा है।

नयी सरकार के गठन हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ हैं। लेकिन बिहार में वही माहौल बनने लगा है जिसकी शंका व्यक्त की जा रही थी। विपक्ष का कहना है कि आरजेडी के शासन में बिहार में अपराधी बेखौफ हो जाते हैं, प्रशासनिक तंत्र कमजोर हो जाता है। बिहार में जदयू-आरजेडी की सरकार बनते ही राज्य में आपराधिक घटनाक्रम में वृद्धि हुई है।

अपराधियों के निशाने पर पत्रकार, व्यवसायी और कारोबारी हैं। वहीं सत्ता के करीबी लोगों ने एक उच्च अधिकारी को उनके ही चैम्बर में मारा-पीटा और धमकाया है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सवाल उठ रहे हैं कि उनका निजी फैसला बिहार के हित के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। बीजेपी का कहना है कि नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ जाकर जनादेश का अपमान किया है।

इसमें दोमत नहीं कि नीतीश कुमार बिहार में बदलाव का चेहरा बने हैं। आज बिहार में विकास का जो स्वरूप दिख रहा है उसका श्रेय नीतीश कुमार को ही जाता है। लेकिन अपनी उम्र के उतरार्ध काल में नीतीश कुमार अपने ही किये धरे पर खुद ही पानी फेरने में जुटे हैं।

बीजेपी का कहना है कि नीतीश कुमार ने ऐसी पार्टी के साथ मिलकर फिर सरकार बना ली जिसे बिहार की बर्बादी के लिए जिम्मेदार माना जाता है। 2005 में जिस जंगलराज के खिलाफ नीतीश कुमार को भारी जनादेश मिला और उसके बाद से  वह एनडीए के सहयोग से लगातार बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए रहे।। इसके पहले भी नीतीश कुमार ने बीजेपी से रिश्ता तोड़कर राजद का दामन थामा था। लेकिन अपनी गिरती छवि को देखते हुए उन्होंने राजद को झटका देकर पुनः बीजेपी के साथ सरकार बना ली।

नीतीश की पाला बदलने की राजनीति उनपर भारी पड़ सकती है। आरजेडी की साथ उन्होंने पुनः सरकार बना ली लेकिन जमीनी स्तर जाकर देखें तो नीतीश कुमार के इस फैसले से बिहार की जनता खफा और असहज है। अगर बिहार में आपराधिक वारदातें नहीं रूकी तो राज्य का विकास प्रभावित होने के साथ-साथ नीतीश कुमार की छवि भी खराब हो सकती है।

बीजेपी का कहना है कि अगर अपराध के प्रति नीतीश कुमार की जीरो टॉलरेंस की नीति है तो उस दल के साथ उन्होंने सरकार क्यों बनायी जिनके नेता खुलेआम कह रहे हें कि वह चोरों के सरदार हैं। यह मानना पड़ेगा कि 2005 में बिहार के विकास के लिए नीतीश कुमार के काम करने का अंदाज और वर्तमान में राज्य सरकार की कार्यशैली में जमीन-आसमान का अंतर है।

 

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