मिड डे मिल में धांधली: बच्चों की थाली में रोटी-नमक
मिर्जापुर के एक प्राथमिक विद्यालय में मिड डे मिल में बच्चों की थाली में रोटी-नमक परोसने की वीडियो वायरल होने के बाद शासन और प्रशासन कटघरे में है। एक स्थानीय पत्रकार द्वारा वीडियो वायरल करने के बाद मिर्जापुर के डीएम हरकत में आये और स्कूल में जाकर देखा तो उन्होंने यह माना कि प्रबंधन में गड़बडी़ हो रही है। लेकिन प्रशासन की यह भी दलील है कि वीडियो जानबूझकर बनायी गयी है, जिससे उत्तर प्रदेश सरकार की बदनामी हो रही है।
जबकि, स्कूल प्रशासन का कहना है कि स्कूल की छवि खराब करने के लिए एक स्थानीय प्रतिनिधि ने साजिशन ऐसा काम किया है। क्योंकि उस समय खाना बन रहा था। रोटी बन चुकी थी और सब्जी तैयार हो रही थी। लेकिन एक स्थानीय प्रतिनिधि ने एक पत्रकार के साथ मिलकर बच्चों को खाना बंटवा दिया और वीडियो वायरल कर दिया।
प्रशासन ने मिड डे मिल प्रबंधक सहित कई लोगों को सस्पेंड कर दिया है। लेकिन प्रशासन ने उक्त पत्रकार पवन जायसवाल पर भी सरकारी कार्य में बाधा डालने सहित कई तरह के आरोप लगाये है। पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी गई और उनपर कई संगीन धाराएं लगायी गई है।
पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद देशभर में सवाल उठने लगे हैं कि अपनी लापरवाही को छिपाने के लिए सरकार का यह कदम कहां तक उचित है। सभी को हैरानी तब हुई जब मिर्जापुर के डीएम साहब कह रहें हैं कि वह प्रिंट मीडिया का पत्रकार है, उसे वीडियो नहीं बनाना चाहिए था। अब इस लापरवाही पर दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बजाये इस योजना से संबंधित अधिकारी लीपापोती में जुट गये हैं।
उच्च पदों पर विराजमान शासन-प्रशासन के नुमाइंदो के गैरजिम्मेदाराना रवैये जिसके कारण इस तरह की योजनाओं की खुलकर लूट होती रही है। अगर प्रशासन सख्त होता, सरकारी कर्मचारियों में कानून का डर होता तो उनमे स्कूली बच्चों की थाली में नमक रोटी परोसने की हिम्मत नहीं होती।
मिड डे मिल योजना सरकार का एक असफल प्रयोग है, क्योंकि इस तरह की अनियमितता की खबरें पहले भी कई स्कूलों से आ चुकी है। सरकार पूर्व की अनियमितताओं को देखकर भी सुधार करने की जगह अगर लीपापोती में लिप्त हो जाती है तो इसका राष्ट्र एवं समाज में गलत संदेश जाता है। सवाल यह भी खड़े होते हैं कि आखिर इस तरह की योजनाओ से गरीब बच्चों का भला नहीं हो रहा है तो इसे निरंतर चलाते रहने की क्या जरूरत है। इसके लिए सरकार को वैकल्पिक रास्ता भी चुनना चाहिए ताकि पोषाहार योजनाओं की सार्थकता पर कोई सवाल नहीं उठाये।
मिड डे मिल और पोषाहार से संबंधित कई योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। इन योजनाओं में अनियमितता और भ्रष्टाचार के मामले हमेशा सुर्खियां में रहते हैं। गरीबों बच्चों के हितों के नाम पर इस तरह की योजनाएं उद्देश्यांें की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि एक औपचारिकतावश चलायी जाती है। लिहाजा शहर से लेकर ब्लॉक स्तर तक इस तरह की योजनाओं में भ्रष्टाचार की एक श्रृंखला बनी हुई है। ( जारी )