Saturday, December 13, 2025
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राम मंदिर शिलान्यास के बाद देश में साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण में तेजी

राम मंदिर के बहाने सर्वाेच्च अदालत और संघीय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करने वाले ये नेता कभी सरोकार की राजनीति नहीं कर सकते। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि उनके बयानों से भारतीय जनमानस पर क्या असर पड़ेगा। उन्हें तो सिर्फ अपने वोट बैंक खिसकने का डर है जो बरक्स ही उनके अल्फाजों से बाहर आ जाता है।

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देश की विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार और एनडीए शासित राज्यों की सरकारों को बदनाम करने के लिए मौके की तलाश में बैठी है। मीडिया चैनलों में हो रही डिबेट में विपक्षी दलों के नेताओं, प्रवक्ताओं के बयानों से यह समझा जा सकता है कि इस देश की सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक सरोकारों को बिगाड़ने के लिए ये सभी किसी भी हद तक जा सकते हैं।

राम मंदिर के बहाने सर्वाेच्च अदालत और संघीय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करने वाले ये नेता कभी सरोकार की राजनीति नहीं कर सकते। साम्प्रदायिक धूरी पर केन्द्रित इनकी राजनीति वर्ग विशेष के हितों को ध्यान में रखकर शुरू होती है। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि उनके बयानों से भारतीय जनमानस पर क्या असर पड़ेगा। यह मानकर चलना होगा कि आगामी चुनाव से पहले राज्य एवं देश में साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण में तेजी आयेगी।

क्योंकि, राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करने वाले  कथित सेक्यूलर, लिबरल, वामपंथी और बुद्धिजीवी अब मंदिर के शिलान्यास को लेकर सर्वोच्च अदालत पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। तत्कालीन शीर्ष न्यायाधीश को अनाप-शनाप बोल रहे हैं। मोदी सरकार को मुस्लिम विरोधी का तमगा देकर देश के मुसलमानों को भड़का रहे हैं।

विदित हो कि राम मंदिर का शिलान्यास 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा सम्पन्न हुआ, लेकिन कई लोगों को नरेन्द्र मोदी को अयोध्या जाकर राम मंदिर का शिलान्यास करना नागवार गुजरा है। वह अपने तर्क-कुतर्क के आधार पर इसे संविधान की अवहेलना बता रहे हैं।

इसकी शुरूआत एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने की। ओवैसी का मानना है कि एक सेक्यूलर देश में प्रधानमंत्री को धार्मिक स्थान पर जाकर शिलान्यास करना भारतीय संविधान के खिलाफ है। उन्होंने कहा है कि बाबरी मस्जिद है, थी और रहेगी। उनका तर्क है कि इस्लाम में जिस जगह पर एक बार मस्जिद बन गई वहां पर हमेशा मस्जिद ही रहेगी।
ओवैसी जैसे नेताओ को यह जानने और समझने की जरूरत है कि देश की कई गैर मुस्लिम राजनीतिक हस्तियों के द्वारा अजमेर सहित प्रसिद्ध दरगाहों पर चादर चढ़ाये जाते रहे हैं। लेकिन कभी भी कोई हिन्दू अथवा हिन्दू धर्म गुरू इस पर आपत्ति जाहिर नहीं की है क्योंकि यह आस्था का विषय है। संवैधानिक आधार पर किसी की धार्मिक आस्था पर दूसरे को दखल देने का अधिकार नहीं है।

अब अगर देश की राजनीति और धर्मनिरपेक्षता का सवाल है तो राष्ट्रपति भवन, प्रधानमत्री निवास, राज्यपालोें, उपराज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के निवास पर भी रमजान के मौके पर इफ्तार पार्टी का आयोजन होता रहा है। भले ही नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री निवास पर इफ्तार पार्टी बंद कर दी गई हो। लेकिन राज्यों के मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों के निवास पर रमजान के मौके पर इफ्तार पार्टी के आयोजन अब भी हो रहे हैं। जिसमें राज्य के बड़े-बड़े राजनेता शिरकत करते देखे जाते हैं।

इतना ही नहीं पूर्व में केन्द्र की सरकारों द्वारा हज सब्सिडी के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी, जिसे मोदी सरकार ने बंद कर दिया। हालांकि कुछ-कुछ राज्यों की सरकारें अपने स्तर से हज पर जाने वालों के लिए विशेष व्यवस्था करती रही है। लेकिन इसपर तो कभी संविधान की अवहेलना नहीं हुई, इस पर तो कभी ओवैसी ने सवाल खड़ा नहीं किया, जबकि यह धर्म विशेष मामला है।

इस तरह के दोहरा मापदंड अपनाने से ओवैसी जैसे नेताओं को मुस्लिम जमात में भले ही लोकप्रियता मिल जाती हो लेकिन देश की जनता उनकी साम्प्रदायिक सोच को भलीभांति समझ रही है।  इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान ने राम मंदिर के शिलान्यास को ही गैरकानूनी बता दिया और सुप्रीम कोर्ट पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि मोदी सरकार ने हिन्दुत्व के पक्ष में फैसला लिखवा लिया।

ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने ट्वीट किया कि अयोध्या में मस्जिद को मंदिर तोड़कर नहीं बनायी गई थी लेकिन अब हो सकता है कि मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को तोड़ा जा सकता हैं।

जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दोनों पक्षों ने स्वीकार कर लिया तो इस तरह के ट्वीट और बयानों से देश में शत्रुता और साम्प्रदायिकता का माहौल बनेगा। अपनेेे तर्क और कुतर्क से ऐसे धर्मगुरू, नेता, लिबरल और कथित बुद्धिजीवी राष्ट्र और समाज में सिर्फ वैमनस्य पैदा करना चाहते हैं।

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के मंत्री मोहसिन रजा का मानना है कि राम मंदिर के संदर्भ में जो भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़ा कर रहे हैं, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को मोदी सरकार के हाथों बिक जाने की बात कर रहे हैं, देश में सौहार्द को बिगाड़ने का काम कर रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई किये जाने की जरूरत है। क्योंकि ये सभी न्यायपालिका और भारतीय संविधान का अपमान कर रहे हैं।

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