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इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की भद्द पिट गई

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या/ हत्या मामले में सीबीआई जांच के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार के आक्रामक तेवर की वजह जानना जरूरी है।

दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या/ हत्या मामले में आखिरकार सीबीआई जांच की मंजूरी मिल गई। सीबीआई जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सुशांत मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दी है। पिछले दो महीने से यह मामला मीडिया की सुर्खियों में बना रहा और इसपर भरपूर राजनीति हुई है। निष्कर्ष आने तक यह मामला बिहार और महाराष्ट्र की सियासत में उछाला जाता रहेगा। बता दें कि बिहार सरकार ने भी इस मामले की जांच सीबीआई से कराने के लिए केन्द्र से सिफारिश की थी।

इस पूरे मामले में अगर किसी की भद्द पिटी है तो वह है महाराष्ट्र सरकार। तमाम आरोपों और प्रत्यारोंपों के बावजूद बॉलीवुड गैंग सुशांत मामले में चुप्पी नहीं तोड़ी जबकि महाराष्ट्र सरकार का जो रवैया दिखा वह काफी निराशाजनक है।
इस मामले की जांच के लिए जिस तरह बिहार पुलिस को महाराष्ट्र में नजरअंदाज किया जाने लगा अथवा महाराष्ट्र के शासन-प्रशासन द्वारा अडंगा डालने की कोशिश की जाने लगी, वह उद्धव सरकार के लिए ही मुश्किलें खड़ी करेगी।

बिहार के तेज-तर्रार आईपीएस विनय तिवारी और उनके सहयोगियों को महाराष्ट्र में जिस तरह कोरोना के नाम पर कोरेंटीन कर सुशांत मामले की जांच से दूर रखने की कोशिश की गई इससे देश की पुलिस सिस्टम बदनाम हुई है। बिना सत्ता की मिलीभगत से बीएमसी द्वारा ऐसा किया जाना संभव नहीं है। महाराष्ट्र सरकार को किस बात का डर है कि सुशांत केस से बिहार पुलिस को दूर रखना चाह रही थी।

महाराष्ट्र पुलिस और महाराष्ट्र सरकार के असहयोगात्मक रवैये से सुशांत सिह राजपूत को न्याय दिलाने के लिए देशभर में मांग उठने लगी। क्योंकि महाराष्ट्र पुलिस की जांच पर ही लोग सवाल उठाने लगे। कुछ समय के लिए यह मामला बिहार पुलिस बनाम महाराष्ट्र पुलिस हो गया और एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश भी शुरू हो गई। यहां तक की शिवसेना के संजय राउत बिहार पुलिस को महाराष्ट्र पुलिस से कमतर आंकने लगे और इस मामले को डायवर्ट करने की कोशिश भी करने लगे। शायद महाराष्ट्र सरकार, शिवसेना द्वारा ये सारी हरकतें इसलिए की जा रही थी कि, ताकि सच को दबाया जा सके।

इस मामले में मुख्य आरोपी रिया चक्रवर्ती के खिलाफ जब बिहार में एफआईआर हुई तो बिहार पुलिस ने मुंबई जाकर इसकी तहकीकात शुरू की, जिससे उद्धव सरकार और बॉलीवुड गैंग में खलबली मच गई। सुशांत सिंह की कथित गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती 15 करोड़ की हेराफेरी सहित कई आरोपों में घिर गई है और उसे बचाने के लिए बॉलीवुड गैंग ने एड़ी-चोटी एक कर दी है। जिस रिया चक्रवर्ती की एक भी फिल्म अब तक हिट नहीं हुई है उसके सम्पर्क बॉलीवुड में बड़े-बड़े लोगों से हैं। उसने केस लड़ने के लिए देश के महंगे वकील को हायर किया है। रिया चक्रवर्ती कभी बिहार में अपने खिलाफ दायर एफआईआर को मुंबई ट्रांसफर करने की अपील सुप्रीम कोर्ट में करती है तो कभी सीबीआई जांच की मांग की याचिका खारिज करने के लिए। वह महंगी गाड़ियों में चलती है, उसके खर्च और आय में आसमान जमीन का फर्क है। रिया ने महेश भट्ट कैंप निर्मित फिल्म जलेबी से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। लेकिन वह फिल्म खास नहीं चली और अब तक रिया के फिल्मी कैरियर में कोई हिट फिल्म नहीं है। शायद उसने यही सोचा कि फिल्मी कैरियर का ग्राफ उपर बढ़े या हीं बढ़े लेकिन पहचान का दायरा बढ़ना चाहिए और उसने अपने लिंक बढ़ाने शुरू कर दिये।

रिया चक्रवर्ती की वायरल फोटो और वीडिया ने इस केस को और जटिल बना दिया कि कुछ तो गड़बड़ है। रिया के साथ आदित्य ठाकरे की एक फोटो वायरल होने के बाद से ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे परेशान दिख रहे हैं। जांच में अड़ंगा डालने के लिए नई-नई तरकीबें भी अपनायी जाने लगी। कभी कोरोना का बहाना तो कभी पुलिस के अधिकार क्षेत्र पर कानूनी पाठ पढ़ाया जाना। कभी बिहार पुलिस को नीचा दिखाना तो कभी बिहार सरकार पर इस मामले पर राजनीति करने जैसे आरोप लगाना। उससे कहीं ज्यादा बिहार पुलिस के कप्तान डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे को अनाप-शनाप बोलना, यह कहीं न कहीं इस मामले को और पुख्ता कर दिया कि कुछ तो गड़बड़ है और इस कांड में रिया चक्रवर्ती सिर्फ एक मोहरा है। देशभर में सीबीआई जांच की मांग उठने लगी।

जबकि, महाराष्ट्र पुलिस के मुताबिक, सुशांत सिंह राजपूत का मामला आत्महत्या से जुड़ा है और इसकी तमाम बिन्दूओं पर जांच की जा रही है। लेकिन महाराष्ट्र पुलिस पर सवाल तब उठने लगे जब यह पता चला कि इस संदर्भ में मुंबई पुलिस ने एफआईआर तक नहीं की है। तो किस आधार पर जांच की जा रही है। जब जांच का आधार ही निराधार है तो मुंबई पुलिस की कार्यवाही पर देश भर में सवाल उठना लामिजी है।

बहरहाल, सुशांत सिंह राजपूत को न्याय मिलना चाहिए। वह सच सामने आना चाहिए जिसे ढंकने के लिए जांच के नाम पर महाराष्ट्र सरकार एवं मुंबई पुलिस द्वारा लीपापोती की जा रही है। आखिर क्या कारण कि इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को कूदना पड़ा। लेकिन सत्ता के मद में चूर उद्धव ठाकरे को इसका अहसास भी नहीं है कि देशभर में उनकी नकारात्मक छवि बनी है।

महाराष्ट्र सरकार के नुमाइंदों और शिवसेना के प्रवक्ताओं ने मीडिया चैनलो की डिबेट में बॉलीवुड गैंग को फेवर करके सरकार को मुश्किल में डाला है। वे सुशांत सिंह राजपूत को दिमागी तौर पर बीमार बताने लगे। इतना ही नहीं उनके पारिवारिक जीवन और उनकी निजी जिंदगी पर कई तरह के अनर्गल बातें करने लगे। ऐसा करके इस केस को किसी और दिशा में मोड़ने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह इसमें असफल रहे। सवाल उठ रहे हैं कि कहीं इस कांड के पीछे कोई बड़ा चेहरा तो नहीं है जिसे कवर अप देने के लिए महाराष्ट्र सरकार को आगे आना पड़ा।

शिवसेना अपनी सियासी अनुभवहीनता का परिचय महाराष्ट्र में कुर्सी संभालने के बाद से ही दे रही है। मुख्यमंत्री बनने की लालसा में उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी के सिद्धांतों को भी तिलांजलि दे चुके हैं। सुशांत मामले में महाराष्ट्र महाअघाड़ी के  नेताओं के सुर अलग-अलग हैं। सरकार में शामिल एनसीपी के नेता शरद पवार ने कहा है कि उन्हें सीबीआई जांच से कोई आपत्ति नहीं है। हम सीबीआई की जांच में सहयोग करने को तैयार हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी अब तक इस मामले पर चुप्पी साधे बैठी है। जबकि इस मामले में शिवसेना शुरू आक्रामक तेवर दिखा रही है और सीबीआई जांच के खिलाफ है।

अब इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है तो शिवसेना ने आपत्ति जाहिर करते हुए कहा है कि यह संघीय ढाचा के साथ खिलवाड़ है। शिवसेना का कहना है कि जांच सीबीआई से करवाने की जगह डबल बेंच से भी करवाई जा सकती थी। लेकिन सियासी फायदे के लिए यह जांच सीबीआई को सौंपी गई है।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महाराष्ट्र की सरकार और प्रशासन में खलबली मची है। महाराष्ट्र पुलिस को सुशांत से जुड़े तमाम दस्तावेजों को सीबीआई को सौंपने के आदेश दिये गये हैं। सत्ता और शासन के घालमेल से सवालो के घेरे में आ चुकी इस जांच को लेकर अब सीबीआई पर न्याय की उम्मीदें टिकी है।

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